सनातनियों का कोई संगठन न होना व अव्यवस्था

सनातनियों का कोई संगठन न होना व अव्यवस्था
सनातनियों का कोई भी संगठन नहीं है जो पूरी तरह व्यवस्थित हो अौर अच्छे ढंग से सालों साल चलता रहा हो। मुशिकल से भी यदि कोई संगठन बनता है तो वह केवल कुछ महीनों तक चलता है अौर फिर अापसी विवाद के चलते ठप्प हो जाता है। सनातनी मंदिरों का भी एेसा ही हाल है। ज्यादातर मंदिरों की कमेटियों के पदाधिकारी भी सनातनी नहीं होते उनका ध्यान केवल मंदिर में चढ़ रहे चढ़ावे की तरफ ही होता है। अापस में रंजिश इतनी होती है कि एक दूसके  के कामों में रुकावटें खड़ी करते रहते हैं। ये मंदिरों में एेसे टी शर्ट व जीन्स पहन कर घूमते हैं जैसे कि किसी शापिंग माल्स में शापिंग करने के लिए अाए हों। ईसाइयों व मुसलमानों के सामने ये व्यवस्था के मामले में कहीं भी टिक नहीं पाते। ईसाई जिस क्षेत्र में चर्च खोलते हैं तो वे उस क्षेत्र के बारे में पूरी जानकारी रखते हैं कि यहां उन्हें कैसे काम करना है। किस तरह से लोगों को ईसाई धर्म से जोड़ना है अौर किन लोगों में प्रचार करना है अौर कैसे कम से कम विरोध का सामना करना है।
मंदिरों के पदाधिकारी इस काम में जरा सा भी निपुण नहीं हैं। मंदिरों में अारती के समय सिर्फ 4 या 5 ही व्यकित होते हैं जो कि कमेटी पदाधिकारियों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। मंदिर कमेटी के पदाधिकारी अमीर व मालदार लोगों की जेबों पर ध्यान देते हैं अौर गरीब भक्तों को दुत्कार देते हैं। प्रशाद बांटते समय एेसा अालम होता है जैसे कि कोई जंग लगने वाली हो धक्का मुक्की से परेशान लोग प्रशाद ले ही नहीं पाते। बहुत ही कम मंदिर होंगे जहां अापको अच्छी तरह से सफाई मिलेगी अापको पंडित जी के बैठने वाल जगह देखकर ही पता चल जाएगा कि कमेटी वाले पंडित जी को कितना मान-सम्मान देते होंगे।
मंदिरों को राजनीतिक पार्टियों ने अपना गढ़ बना कर रखा है जिस पार्टी की सरकार होती है उसी के लोग कमेटी में घुसपैठ कर लेते हैं। राजनीतिक पार्टियों के कारण एक मंदिर कमेटी के पदाधिकारी दूसरी मंदिर कमेटी से कोई सम्बंध नहीं रखते। एक मंदिर को ध्वस्त भी कर दिया जाए तो दूसरे इलाके के लोग इसका  कोई विरोध नहीं करते। धर्म का प्रचार कैसे करना है कैसे दूसरे धर्म के लोगों को अपने से जोड़ना है इसके बारे कोई काम नहीं किया जाता। सिर्फ इस तरफ ही  ध्यान दिया जाता है कि बंद कमरे में कोई धार्मिक कार्यक्रम कर लिया जाए अौर उसमें सिर्फ सनातनी ही शामिल होते हैं। अाज सनातनी अारएसएस, रामकृष्ण मिशन, चिन्मय मिशन, अार्य समाज जैसा सशक्त संगठन भी नहीं बना पाए। सनातनियों में एकता नाम की कोई चीज नजर नहीं अाती किसी के पास पैसा या सरकारी नौकरी लग जाती है तो वह तुरंत सैकुलर बन जाता है व अपने समाज से दूरी कर लेता है। जिस सनातन समाज को दोबारा उठाने वाले
भगवान अादि शंकराचार्य जी हैं, उनको भी अाज सनातनी नहीं जानते यदि जानते भी हैं तो उनका अनुसरण नहीं करते। अाज कोई भी सनातनी मंदिर शंकराचार्य जी को बुलाना तो दूर उनके लिखे धार्मिक ग्ंथों के बारे में चर्चा तक नहीं करते। मैंने पिछले 25  साल से बने एक अच्छे मंदिर के प्रधान से पूछा कि अाप इलाके के कितने गैर हिन्दुअों  को सनातन धर्म में ला चुके हो तो वह बगले झांकने लगा वह एेसे देखने लगा कि जैसे मैंने कोई एेसा प्रश्न कर लिया हो जिस मंदिर से कोई लेना-देना न हो। फिर मैंने उसको बताया कि पास के एक गांव में 20  साल पहले एक चर्च बनी थी उस समय उस गांव में केवल 25 ईसाई थे। अाज वह गांव पूरी तरह से ईसाई बन गया है। इसका उस मंदिर प्रधान के पास कोई उत्तर नहीं था। यह एक मंदिर का हाल नहीं लगभग सभी मंदिरों का यही हाल है। सनातनी अपनी कोई अखबार या चेनल भी नहीं बना सके जिससे वे धर्म का प्रचार कर सकें। स्कूल अस्पताल खोलने अौर उन्हें चलाना तो बहुत दूर की बात है। अक्सर ये दूसरों की कमियां निकालते रहते हैं लेकिन दूसरों से कुछ सीखते नहीं। किस प्रकार ईसाई हर क्षेत्र में चाहे स्कूल हो, अस्पताल हो, अनाथालय हो, पशुअों के हित के लिए बनी संस्थाएं हों बड़े अाराम से धनवान हिन्दुअों की जेबों से दान के रूप में पैसा निकलवा लेते हैं अौर फिर उन्हीं पैसों से जोर शोर से  हिन्दुअों का ही धर्मपरिवर्तन करवाते हैं। अाज भी ईसाई स्कूलों में पढ़ने वाले 95 बच्चे हिन्दुअों के ही होते हैं अौर वे अपनी कमाई का काफी हिस्सा इन्हें देते हैं। इन मिशनरी स्कूलों से केवल ईसाई ही निकलते हैं उनके नाम हिन्दुअों के हो सकते हैं।  ज्यादातर सनातनी संत अपने व अपने चेलों पर ही अपना ध्यान रखते हैं अौर बात-बात में दूसरे सनातनी संत का विरोध भी करते रहते हैं। इससे जब वह किसी मुसीबतमें पड़ते हैं तो उनका कोई सा देने के लिए अागे नहीं अाता यहां तक कि बनाए गए चेले चपाटे भी भाग जाते हैं। यदि सनातनियों को अपने को बचाना है तो इनको
प्रोफेशनल तरीके से काम करना होगा साम, दाम,दंड व भेद जैसी सभी नीतियां अपनानी होंगी। प्रोपेगैंडा पर विशेष ध्यान देना होगा हर अपने खिलाफ उठी अवाज का उसी तरीके से उनकी ही भाषा में उत्तर देना होगा।

नोट यह किसी की भावनाअों को ठेस पुहंचाने के लिए नहीं, नींद से जगाने के लिए है।

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