क्या ब्राह्मणों ने दूसरों का हक मारा

क्या ब्राह्मणों ने दूसरों का हक मारा

अाज समाज में वामपंथी व कुछ तथाकथित दलित नेताअों की तरफ से स्वर्ण समाज व ब्राह्मणों पर एेसे नफरती अारोप लगाए जाते हैं जिनका न तो उनके पास प्रमाण है अौर न ही वे पेश कर पाएंगे। अभी कुछ दिन पहले एक 75 वर्षीय जाटव उपनाम वाले तथाकथित दलित नेता का इंटरव्यू  लिया जा रहा था । इसमें ये कह रहा था कि ब्राह्मणों  ने दलितों से अन्याय किया है अौर अब दलितों को किसी भी ब्राह्मण नेता को वोट नहीं देना चाहिए अौर ब्राह्मणों को घरों से निकान कर चुन-चुन कर मार देना चाहिए। वह कह रहा था कि भारत में मनुवादी ब्राह्मणों की व्यवस्था् है। हर तरफ ब्राह्मणों  का ही कब्जा है। न्यायपालिका में से सारे ब्राह्मणों  को निकाल कर दलितों की भर्ती की जानी चाहिए। योग्यता के बारे में उसने कुछ नहीं कहा। उसने एक शब्द यह भी प्रयोग किया अकलीयत के लोगों को ऊंचे पदों पर बैठाना चाहिए।
 अाइए हम उसके लगाए अारोपों का विश्लेषण करते हैं। पहली बात है कि वह पूरी तरह  से एक वर्ग विशेष के खिलाफ नफरत फैला रहा है। वह वैसा ही कह रहा है जैसा जर्मनी में हिटलर ने यहूदियों के खिलाफ 10 साल तक नफरती प्रचार किया अौर फिर बेकसूर यहूदियों का नरसंहार किया। भारत में पिछले लगभग 14 साल तक मुसलमानों का राज रहा फिर उसके बाद अंग्रेजों का लगभग 200 साल तक रहा इस दौरान ब्राह्मणों या हिन्दुअों के हाथों में कोई सत्ता नहीं थी उनका बलात् धर्मपरिवर्तन हुअा व करोड़ों हिन्दुअों का नरसंहार हुअा। इस दौरान दलितों का कोई भला न कर सका। अब भारत में दलित अम्बेदकर का संविधान लागू है जिसमें दलितों को विशेष अधिकार दिए गए हैं। पिछले 70 सालों से संविधान के अनुसार ही सारे फैसले होते हैं। जिस मनु स्मृति के वह बात कर रहा है वह कहीं भी लागू नहीं है। जबकि मुसलमान अभी भी शरिया को ही मानते हैं। दुनिया में 58 मुसिलम देशों में शरिया लागू है। लेकिन ये महानुभाव शरिया के बारे में लोगों को नहीं बताएंगे। दूसरी बात यह है कि क्या भारत का संविधान सभी लोगों को न्याय दिला पाया। क्या अाज भी इस संविधान पर मनुस्मृति हावी है जो इसका इतना भय इनको सता रहा है। इन जाटव महानुभाव का यह  भी अारोप है कि ब्राह्मणों  ने  दूसरों का हक मारा है।
क्या ब्राह्मणों ने बम धमाके करके या लोगों के गले काटकर या डाका डालकर उच्च पदों को प्राप्त किया है। नहीं उन्होंने सारे अन्याय सहते हुए 16-16 घंटों तक अध्ययन करके ही अपने मुकाम को पाया है। ये महानुभाव कभी भी यह नहीं कहेंगे कि दलितों को प्रतिस्पर्धा की भावना से जुटना चाहिए।
दलित किसी भी तरह से किसी से कम नहीं हैं। उन्हें भी 16-16 घंटों कर पढ़ाई करते स्वयं को सिद्ध करना चाहिए । क्या अब अध्ययन करने में भी अारक्षण या छूट मिलनी चाहिए। अाज ब्राह्मणों व स्वर्णों के बच्चों से हर क्षेत्र में भेदभाव किया जाता है । कहीं भारी भरकम फीसों में कोई छूट नहीं दी जाती। सरकारी नौकरियों के लिए तो उनके लिए दरवाजे बंद हैं अौर यदि मिल भी जाए तो वह जिस पोस्ट पर भर्ती होता है तो उसी पोस्ट पर रिटायर्ड भी हो जाता है।  अाज संसद में स्वर्ण सांसद होने पर भी स्वर्णों की कोई सुनवाई नहीं है । अाज जो दलित अधिकारी ऊंचे पदों पर बैठे हैं वे स्वर्णों के प्रति नफरत से ही भरे हैं। क्या दुनिया में दलित पहले अाए या स्वर्ण तो क्या जब से दुनिया बनी दलित दलित ही रहा क्या यह कभी ऊपर नहीं उठ पाया।
दलितों के गौरवमयी इतिहास के बारे में ये लोग उन्हें नहीं बताएंगे। यदि एेसा हुआ तो इनमें गर्व की भावना पैदा हो जाएगी अौर फिर ये स्वाभिमानी होकर मुख्यधारा में जुड़ जाएंगे अौर दलित कहलाना अच्छा नहीं मानेंगे। हमारी तो इन जाटव भाई को सलाह है कि अाप भी कोई अाईएस जैसा अातंकवादी संगठन बना लें अौर थोक में निर्दोष लोगों की हत्याएं करना शुरु कर दे क्योंकि मैदान में उतरकर अाप जैसे लोग मुकाबला करने की स्थिती में नहीं हैं।  पंजाबी में एक कहावत है कि कांवा दे कहे ढक्के नहीं मरदे।
 अाप जैसे लोग सिर्फ मांगते रह गए अौर विदेश से अपना सबकुछ गंवा कर भारत में अाए 0.1 प्रतिशत पारसियों देश को इतना कुछ दे दिया कि हम उसे लौटा नहीं सकते। सिखों, जैनियों ने भारत को सिर्फ दिया ही दिया है। अाज भी ये लोग दे ही रहे हैं। एेसे लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए। ब्राह्मणों  व हिन्दुअों ने जो कुछ इस देश के लिए किया वैसा सभी को करना चाहिए। हमें गर्व है अपने पूर्वजों पर जिन्होंने हमारे जीन में अध्ययन हमें दिया है अौर हम इसी के सहारे अागे बढ़ते जाएंगे। 

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