chaiti mela kashipur | mela in kashipur


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काशीपुर में आप रहते हैं और चैत मेले में भगवती माता के दर्शन करने नहीं पहुंचे तो आप ने अपना एक जन्म गंवा दिया। इस मेले में मां भवानी के डोले की अनपम छठा देखते ही बनती है।  भगवती बाल सुंदरी का डोला चैती मंदिर पहुंच जाता है। मां भवानी के दर्शन करने को रातभर हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है। भक्त लंबी कतारों में मां के दर्शन को लालायित रहते हैं। इतने भक्तों को सम्भालना और उन्हें कोई परेशानी न होने देना पुलिस काम होता है। पुलिस को व्यवस्था बनाए रखनी होती है। तड़के भगवती बाल सुंदरी का डोला चैती मंदिर पहुंच जाता है। इसके साथ ही देवी दर्शन के लिए भीड़ लगने लगती है। मां के डोले कोएक दिन पहले किसी भक्त के आवास पर  सार्वजनिक दर्शनों को रखा जाता है। chaiti mela kashipur | mela in kashipur

देवी का शृंगार करने के बाद  पूजा, अर्चना करवाई जाती है। इसके पूर्णाहुति दी जाती है। बली प्रथा बंद होने के बाद अब बकरों के बजाय जायफल, नारियल की बलि दी जाती है। तड़के करीब पौने चार बजे कहार डोली उठाकर पैदल चलते हैं और साढ़े चार बजे चैती मंदिर पहुंचते हैं।

पूजा, अर्चना, आरती के बाद देवी को मंदिर में सार्वजनिक दर्शन के लिए स्थापित किया जाता है। नगर मंदिर से डोला के साथ श्रद्धालुओं का टोला चलता है।

 मां के मंदिर परिसर में स्थित पाखड़ के पेड़ की खासियत यह है कि इसका तना पतली टहनी तक खोखला है। एक मान्यता है  कि एक बार एक महात्मा आए उन्होंने मंदिर के पुजारी को शक्ति दिखाने को कहा तो पुजारी ने कदंब के पेड़ पर पानी का छींटा डाला तो पेड़ सूख गया। तब उन्होंने फिर हरा करने को कहा तो पुजारी जी अपने योग बलसे ने पेड़ हरा कर दिया, लेकिन पेड़ खोखला रह गया।  chaiti mela kashipur | mela in kashipur
चैती का मेला इस क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला है जो नैनीताल जनपद में काशीपुर नगर के पास प्रतिवर्ष चैत की नवरात्रि में आयोजित किया जाता है । इस स्थान का इतिहास पुराना है ।

काशीपुर में कुँडश्वरी मार्ग जहाँ से जाता है, वह स्थान महाभारत से भी सम्बन्धित रहा है । इस स्थान पर अब बालासुन्दरी देवी का मन्दिर है । मेले के अवसर पर दूर-दूर से यहाँ श्रद्धालु आते हैं ।
 भगवती बाल सुंदरी के मेला में आने के साथ ही मेला परवान चढ़ जाता है। दुकानों में खरीदारों की भारी भीड़ लग जाती है। खाने पीने की दुकानों में पैर रखने की जगह नहीं होती। तमाशा बाजार में बड़े झूलों, मौत का कुआं, सर्कस देखने वालों की भीड़ लगी रहती है।
पुलिस, मेला प्रबंधकों के लिए चुनौती रहती है कि भीड़ अधिक बढ़ने से सबसे बड़ी समस्या किसी कारण भगदड़ मचने की स्थिति में भीड़ को नियंत्रित करना होता है। नगर के दक्षिणी द्वार पर जहां टैंपो, ई-रिक्शा, वाहन सड़क पर खड़े रहते हैं। वहीं मेला परिसर से चैती चौराहा तक सड़क के दोनों ओर दुकानें लगी हैं। भक्तों को चेतावनी दी जाती है कि मेंले में किसी भी अंजान व्यकित से कुछ न लें, रिक्शा व आटो वालों का नम्बर नोट रखें, ज्यादा रात होने पर अकेले न आएं और न जाएं, मेले में खरीददारी व खान पान कम ही करें क्योंकि सामान उच्च स्तर का नहीं होता। मेला परिसर से अपने वाहन काफी दूर पर पार्किंग में ही लगाएं क्योंकि भीड़ होने के कारण वाहनों को निकलने का रास्ता नहीं होता।
ऐसे में भगदड़ मचने पर दुर्घटना की आशंका रहती  है। मेला के दौरान एमपी चौक, चीमा चौराहा, टांडा उज्जैन, खोखराताल में यातायात की गंभीर समस्या हो जाती है। मेले में महिलाओं से छेड़छाड़, जेब कटने की घटनाएं रोकना भी पुलिस के लिए चुनौती रहती है।
काशीपुर में दूसरे राज्यों से आकर बसे लोग जिनमें मां भवानी के प्रति श्रद्दा नहीं होती वे मेले में आकर गलत काम करते हैं। इसलिए भक्तों को चाहिए कि ऐसे धर्म विरोधी लोगों से निपटने के लिए डंडों से लैस होकर हर समय तैयार रहना चाहिए।chaiti mela kashipur | mela in kashipur
वैसेे तो सीसीटीवी से मेला में नजर रखने की व्यवस्था होती है लेकिन गलत लोग फिर भी महिलाओं से छेड़छाड़ करते हैं। छेड़छाड़ करने वालों, जेबकतरों से निपटने के लिए पुलिस एवं महिला पुलिस सिविल ड्रेस में मेले में नियुक्त रहती  हैं।
 अापको बता दें कि चैती का मेला इस क्षेत्र का प्रसिद्ध मेला है जो नैनीताल जनपद में काशीपुर नगर के पास प्रतिवर्ष चैत की नवरात्रि में आयोजित किया जाता है । इस स्थान का इतिहास पुराना है । काशीपुर में कुँडश्वरी मार्ग जहाँ से जाता है, वह स्थान महाभारत से भी सम्बन्धित रहा है । इस स्थान पर अब बालासुन्दरी देवी का मन्दिर है ।
शाक्त सम्प्रदाय से सम्बन्धित सभी मंदिरों में नवरात्रि में विशाल मेले लगते रहते हैं। भवानी माँ बालासुन्दरीसे जो भी मांगा जाता है, मां भवानी अवश्य पूरा करती है।  नवरात्रि में अष्टमी, नवमी व दशमी के दिन यहाँ श्रद्धालुओं का तो समुह ही उमड़ा रहता है । बालासुन्दरी के अतिरिक्त यहाँ शिव मंदिर, भगवती ललिता मंदिर, बृजपुर वाली देवी के मंदिर, भैरव व काली के मंदिर हैं ।

 वैसे माँ बालासुन्दरी का स्थाई मंदिर पक्काकोट मुहल्ले में अग्निहोत्री ब्राह्मणों के यहाँ स्थित है । इन लोगों को चंदराजाओं से यह भूमि दान में प्राप्त हुई थी । बाद में इस भूमि पर बालासुन्दरी देवी का मन्दिर स्थापित किया गया । बालासुन्दरी की प्रतिमा स्वर्णनिर्मित बताई जाती है ।

आज जो लोग इस मन्दिर के महान पुजारी हैं, उनके पूर्वज मुगलों के समय में यहाँ आये थे । उन्होंने ही इस स्थान पर माँ बालासुन्दरी के मन्दिर की स्थापना की ।
 थारु जनजाती के लोगों की तो इस देवी पर बहुत ज्यादा आस्था है । थारुओं के नवविवाहित जोड़े हर हाल में माँ से आशीर्वाद लेने चैती मेले में जरुर पहुँचते हैं ।  अन्त में दशमी की रात्रि को डोली में बालासुन्दरी की डोली में बालासुन्दरी की सवारी अपने स्थाई भवन काशीपुर के लिए प्रस्थान करती है । मेले का समापन इसके बाद ही होता है ।

चैती मेले का रंग तभी से आना शुरु होता है जब काशीपुर से डोला चैती मेला स्थान पर पहुँचता है । डोले में प्रतिमा को रखने से पूर्व अर्धरात्रि में पूजन होता है तथा बकरों का बलिदान भी किया जाता है । डोले को स्थान-स्थान पर श्रद्धालु रोककर पूजन अर्चन करते और भगवती को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। आप भी मां के दरबार में सादर आमंंत्रित हैं । परिवार के साथ माता के दरबार में आएं और अपनी मनोकामनाएं पूरी करें।

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