इस्लामिक हमलावरों द्वारा भारत को उपनिवेश बनाने के बाद यहां क्या-क्या परिवर्तन अाए
इस्लामिक हमलावरों द्वारा भारत को उपनिवेश बनाने के बाद यहां क्या-क्या परिवर्तन अाए
इस्लामिक हमलावरों के अाने से पहले भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। यहां लाखों गुरुकुल थे जहां से छात्र अायुर्वेद, गणित, ज्योतिष, अथर्शास्त्र, राजनीति शास्त्र, भवन निर्माण,वास्तु कला, मूर्ति कला अादि में पारंगत होकर समाज की सेवा करते थे। राजा का धर्म अपनी प्रजा की रक्षा करना होता था।
उस समय कोई भी बेरोजगार नहीं था क्योंकि बच्चा जन्म लेने के बाद अपने परम्परागत काम में या अपनी इच्छा के अनुसार किसी अन्य काम धंधे को चुन लेता था। अापको प्राचीन ग्रंथों में गरीब ब्राह्मण शब्द तो मिल जाएगा लेकिन बेरोजगार शब्द नहीं मिलेगा। अापको किसी भी ग्रंथ में मां बहन अादि की गालियां भी नहीं मिलेंगी। उस समय भारत विभिन्न जनपदों में बंटा था। हिन्दू, बुध व जैन धर्म मुख्य थे। चर्वाक धर्म को मानने वाले भी थे जो वैदिक परम्परा के घोर विरोधी थे अौर नासितक थे। कई क्षेत्रीय भाषाएं थी लेकिन संस्कृत, हिन्दी ,पाली व तमिल भाषाएं ज्यादा लोगों के द्वारा बोली जाती थीं। एक राजा दूसरे राजा को हरा देता था तो इसके बाद युद्ध संधी होने के बाद दूसरा राजा अा जाता था लेकिन प्रजा वही रहती थी अौर कुछ समय बाद सब कुछ सामान्य हो जाता था। राजा किसी का धर्मपरिवर्तन नहीं करता था अौर न ही मंदिरों पर कोई कब्जा करता था। किसी भी सम्पति को कोई नुकसान नही पहुंचाया जाता था। कहने का मतलब है कि जो कुछ होता था वहीं रहता था। देश का, राज्य का धन देश में ही रहता था।
इस्लामिक हमलावरों के अाने के बाद देश की संस्कृति, भाषा, पहनावे, रहन सहन, धर् के प्रति सोच मे बदलाव अाने लगा। मुसलमान शाशकों ने भारत को
लूटा अौर इसे लगभग 1200 सालों तक इसे अपना उपनिवेष (कालोनी) बना कर रखा। पहले शुरु में तो वे यहां सिर्फ लूटपाट करने अौर यहां के लोगों को इस्लाम कूबल करवाने के लिए अाए थे। उनका मानना था कि यहां से धन व गुलाम अादि लेकर वापस अपने देशों में चले जाएंगे। लेकिन बाद में वे यहीं बस गए। जिन इलाकों को वे जीतते वहां के मंदिर, वहां के ग्रंथ, गुरुकुलों को पूरी तरह से नष्ट करने का प्रयास करते। वहां के लोगों को जबरन इस्लाम करने को
मजबर करते अौर लाखों की संख्या में लोग इस्लाम कुबूल भी कर लेते। अब भारत में मुसिलम इलाकों में ऊर्दू व फारसी बोली पढ़ाई जाने लगी, लोग अरबी लोगों की तरह पहरावा डालने लगे, गौमांस का भी भक्षण करने लगे, 4 शादियां, तलाक अादि का प्रचलन बढ़ गया। एक मात्र अल्ला ही है अौर उसे न मानने वाला व कुरान को न मानने वाला काफिर है, ईश्वर एक ही है अौर वह सातवें अासमान में रहता है यानि ऊपर वाला है। भारतीय परम्परा जैसे कि भगवान कण-कण में हैं को रिजैक्ट किया गया। ईश्वर निराकार है अौर मूर्ति पूजा हराम है , ये विचार भारत में अा गया । अरबी कानून शरिया के अनुसार अदालतें लगने लगीं व अपराधों के निर्णय होने लगे। लोगों के पहनावे खान-पान अौर भाषा भी बदलने लगी। महिलाअों व सैक्स के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा जिस समाज के सैक्स को कामदेव के रूप में अादर दिया जाता था वहां इसे घृणित घोषित कर दिया गया। पुरूष धोती कुर्ते की जगह सलवार कमीज पर व महिलाअों ने भी साड़ी,लहंगा छोड़ कर सलवार कमीज पहननना शुरू कर दिया। अरबी व ऊर्दू बोलने वालों को सरकारी नौकरी मिलती थी अौर इन भाषाअों को बोलना स्टेटस सिम्बल माना जाने लगा। भारतीय धार्मिक प्रम्पराअों के प्रति अनादर व नफरती माहौल पैदा किया गया। मसलन हर चीज को भद्दी तरह से पेश करके उसका मजाक उड़ाया जाने लगा। देवी-देवताअों के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां, ग्रंथों के खिलाफ अपमानजनक शब्द बोले जाने लगे। कई भारतीय
इनके साथ मिलकर भारतीय हिन्दू परम्पराअों का विरोध करने लगे। ये हलाला, तलाक, हलाल, शरिया अादि के बारे में कुछ नहीं बोलते। ये लोग हमलावरों की भषा में बात करते थे अौर उनकी लगभग हर बातों को जायज मानते थे। जो इन परम्पराअों को बचाने का प्रयास करता उसे बेहरमी से कुचल दिया जाता था। कुछ जगहों पर इस्लाम का विरोध हुअा लेकिन वे लोग इसके खिलाफ लड़ते लड़ते 70 प्रतिशत इनके जैसे ही बन गए। मुसिलम बाहुल इलाकों में रहने वाले हिन्दुअों ने भी अपने रिश्तेदारों में शादियां करनी शुरु कर दीं। अाज भी पाकिस्तान से भारत अाए काफी हिन्दू लोग अपने ही रिश्तेदारों में शादियां करते हैं। याद रहे 1947 में पंजाब की पहली भाषा ऊर्दू हो चुकी थी। जिस प्रकार भारतीय के जीवन में अंग्रेजों के अाने के बाद काफी प्रभाव पड़ा उसी प्रकार इस्लाम का भी प्रभाव पड़ा लेकिन इसके बारे में लोग बहुत कम चर्चा करते हैं।
इस्लामिक हमलावरों के अाने से पहले भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। यहां लाखों गुरुकुल थे जहां से छात्र अायुर्वेद, गणित, ज्योतिष, अथर्शास्त्र, राजनीति शास्त्र, भवन निर्माण,वास्तु कला, मूर्ति कला अादि में पारंगत होकर समाज की सेवा करते थे। राजा का धर्म अपनी प्रजा की रक्षा करना होता था।
उस समय कोई भी बेरोजगार नहीं था क्योंकि बच्चा जन्म लेने के बाद अपने परम्परागत काम में या अपनी इच्छा के अनुसार किसी अन्य काम धंधे को चुन लेता था। अापको प्राचीन ग्रंथों में गरीब ब्राह्मण शब्द तो मिल जाएगा लेकिन बेरोजगार शब्द नहीं मिलेगा। अापको किसी भी ग्रंथ में मां बहन अादि की गालियां भी नहीं मिलेंगी। उस समय भारत विभिन्न जनपदों में बंटा था। हिन्दू, बुध व जैन धर्म मुख्य थे। चर्वाक धर्म को मानने वाले भी थे जो वैदिक परम्परा के घोर विरोधी थे अौर नासितक थे। कई क्षेत्रीय भाषाएं थी लेकिन संस्कृत, हिन्दी ,पाली व तमिल भाषाएं ज्यादा लोगों के द्वारा बोली जाती थीं। एक राजा दूसरे राजा को हरा देता था तो इसके बाद युद्ध संधी होने के बाद दूसरा राजा अा जाता था लेकिन प्रजा वही रहती थी अौर कुछ समय बाद सब कुछ सामान्य हो जाता था। राजा किसी का धर्मपरिवर्तन नहीं करता था अौर न ही मंदिरों पर कोई कब्जा करता था। किसी भी सम्पति को कोई नुकसान नही पहुंचाया जाता था। कहने का मतलब है कि जो कुछ होता था वहीं रहता था। देश का, राज्य का धन देश में ही रहता था।
इस्लामिक हमलावरों के अाने के बाद देश की संस्कृति, भाषा, पहनावे, रहन सहन, धर् के प्रति सोच मे बदलाव अाने लगा। मुसलमान शाशकों ने भारत को
लूटा अौर इसे लगभग 1200 सालों तक इसे अपना उपनिवेष (कालोनी) बना कर रखा। पहले शुरु में तो वे यहां सिर्फ लूटपाट करने अौर यहां के लोगों को इस्लाम कूबल करवाने के लिए अाए थे। उनका मानना था कि यहां से धन व गुलाम अादि लेकर वापस अपने देशों में चले जाएंगे। लेकिन बाद में वे यहीं बस गए। जिन इलाकों को वे जीतते वहां के मंदिर, वहां के ग्रंथ, गुरुकुलों को पूरी तरह से नष्ट करने का प्रयास करते। वहां के लोगों को जबरन इस्लाम करने को
मजबर करते अौर लाखों की संख्या में लोग इस्लाम कुबूल भी कर लेते। अब भारत में मुसिलम इलाकों में ऊर्दू व फारसी बोली पढ़ाई जाने लगी, लोग अरबी लोगों की तरह पहरावा डालने लगे, गौमांस का भी भक्षण करने लगे, 4 शादियां, तलाक अादि का प्रचलन बढ़ गया। एक मात्र अल्ला ही है अौर उसे न मानने वाला व कुरान को न मानने वाला काफिर है, ईश्वर एक ही है अौर वह सातवें अासमान में रहता है यानि ऊपर वाला है। भारतीय परम्परा जैसे कि भगवान कण-कण में हैं को रिजैक्ट किया गया। ईश्वर निराकार है अौर मूर्ति पूजा हराम है , ये विचार भारत में अा गया । अरबी कानून शरिया के अनुसार अदालतें लगने लगीं व अपराधों के निर्णय होने लगे। लोगों के पहनावे खान-पान अौर भाषा भी बदलने लगी। महिलाअों व सैक्स के प्रति लोगों का नजरिया बदलने लगा जिस समाज के सैक्स को कामदेव के रूप में अादर दिया जाता था वहां इसे घृणित घोषित कर दिया गया। पुरूष धोती कुर्ते की जगह सलवार कमीज पर व महिलाअों ने भी साड़ी,लहंगा छोड़ कर सलवार कमीज पहननना शुरू कर दिया। अरबी व ऊर्दू बोलने वालों को सरकारी नौकरी मिलती थी अौर इन भाषाअों को बोलना स्टेटस सिम्बल माना जाने लगा। भारतीय धार्मिक प्रम्पराअों के प्रति अनादर व नफरती माहौल पैदा किया गया। मसलन हर चीज को भद्दी तरह से पेश करके उसका मजाक उड़ाया जाने लगा। देवी-देवताअों के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां, ग्रंथों के खिलाफ अपमानजनक शब्द बोले जाने लगे। कई भारतीय
इनके साथ मिलकर भारतीय हिन्दू परम्पराअों का विरोध करने लगे। ये हलाला, तलाक, हलाल, शरिया अादि के बारे में कुछ नहीं बोलते। ये लोग हमलावरों की भषा में बात करते थे अौर उनकी लगभग हर बातों को जायज मानते थे। जो इन परम्पराअों को बचाने का प्रयास करता उसे बेहरमी से कुचल दिया जाता था। कुछ जगहों पर इस्लाम का विरोध हुअा लेकिन वे लोग इसके खिलाफ लड़ते लड़ते 70 प्रतिशत इनके जैसे ही बन गए। मुसिलम बाहुल इलाकों में रहने वाले हिन्दुअों ने भी अपने रिश्तेदारों में शादियां करनी शुरु कर दीं। अाज भी पाकिस्तान से भारत अाए काफी हिन्दू लोग अपने ही रिश्तेदारों में शादियां करते हैं। याद रहे 1947 में पंजाब की पहली भाषा ऊर्दू हो चुकी थी। जिस प्रकार भारतीय के जीवन में अंग्रेजों के अाने के बाद काफी प्रभाव पड़ा उसी प्रकार इस्लाम का भी प्रभाव पड़ा लेकिन इसके बारे में लोग बहुत कम चर्चा करते हैं।
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