वधाइयां जी वधाइयां फिल्म की समीक्षा
वधाइयां जी वधाइयां फिल्म की समीक्षा
समीप कंग ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि वह एक बेहतरीन डायरैक्टर हैं। वधाइयां जी वधाइयां फिल्म पेश करके उन्होंने अपनी काबलियत के झंडे एक बार फिर से गाढ़ दिए हैं। मंझे हुए कलाकारों ने अच्छा काम किया है। स्क्रिट, स्टोरी अच्छी है,दर्शकों को हंसा कर लोटपोट करती है। समीप कंग अच्छी तरह से जानते हैं कि किसी की धार्मिक भावनाअों को बिना ठेस पहुंचाए अौर अादर करते हुए एक बहतरीन फिल्म कैसे दर्शकों को पेश करनी है।
कहानी मजेदार है परगट (विन्नू ढिल्लों) एक समझदार अपने माता पिता का लाडला बेटा है। जो बिना किसी कसूर के बदनाम हो जाता है अौर फिर उसकी शादी के रिश्ते मिलने बंद हो जाते हैं। वे जहां भी जाते हैं उनकी कहानी वहां पहले पहुंच जाती है अौर रिश्ता होते-होते टूट जाता है। बीएन शर्मा,घुग्गी,ढिल्लों अादि सीनियर कलाकारों ने तो बहुत बढ़िया काम किया है लेकिन उनके साथ जूनियर कलाकारों की डॉयलॉग बाजी बेहद ही निराशाजनक है। सहयोगी कलाकार सारी फिल्म का मजा किरकिरा कर देते हैं। जबरन की गई भर्ती लगती है। डाक्टर का किरदार, चाचा का किरदार, घुग्गी के अंधे पिता का किरदार नाटकीय सा लगता है। गुग्गी का पिता सफेद दाढ़ी से बूढ़ा बनाया गया है उसके चहरे पर लाली 26 साल के युवा कलाकार की है। इन पात्रों को सीरियसली नहीं लिया गया। हांलांकि अंधे पिता की कलाकारी अच्छी है पर वह किसी भी हालत में बूढ़ा नहीं लगता एेसा लगता है कि नाटक का पात्र हो। परगट की मां का रोल कमाल का है हीरोइन गगन का भी ठीकठाक ही है। फिल्म का संगीत अच्छा है पर गानों पर ज्यादा मेहनत न होने के कारण हिट नहीं हो सकते। गाने दर्शकों के मुंह पर चढ़ने चाहिए। फिल्म का अंत भी कुछ मजेदार नहीं है। फिल्म को एेसा लगता है कि फिल्म को किसी जल्दी तरह जल्दी से पूरा करना था अौर पेश करना था। अोवर अाल रेटिंग 3 स्टार ।
समीप कंग ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि वह एक बेहतरीन डायरैक्टर हैं। वधाइयां जी वधाइयां फिल्म पेश करके उन्होंने अपनी काबलियत के झंडे एक बार फिर से गाढ़ दिए हैं। मंझे हुए कलाकारों ने अच्छा काम किया है। स्क्रिट, स्टोरी अच्छी है,दर्शकों को हंसा कर लोटपोट करती है। समीप कंग अच्छी तरह से जानते हैं कि किसी की धार्मिक भावनाअों को बिना ठेस पहुंचाए अौर अादर करते हुए एक बहतरीन फिल्म कैसे दर्शकों को पेश करनी है।
कहानी मजेदार है परगट (विन्नू ढिल्लों) एक समझदार अपने माता पिता का लाडला बेटा है। जो बिना किसी कसूर के बदनाम हो जाता है अौर फिर उसकी शादी के रिश्ते मिलने बंद हो जाते हैं। वे जहां भी जाते हैं उनकी कहानी वहां पहले पहुंच जाती है अौर रिश्ता होते-होते टूट जाता है। बीएन शर्मा,घुग्गी,ढिल्लों अादि सीनियर कलाकारों ने तो बहुत बढ़िया काम किया है लेकिन उनके साथ जूनियर कलाकारों की डॉयलॉग बाजी बेहद ही निराशाजनक है। सहयोगी कलाकार सारी फिल्म का मजा किरकिरा कर देते हैं। जबरन की गई भर्ती लगती है। डाक्टर का किरदार, चाचा का किरदार, घुग्गी के अंधे पिता का किरदार नाटकीय सा लगता है। गुग्गी का पिता सफेद दाढ़ी से बूढ़ा बनाया गया है उसके चहरे पर लाली 26 साल के युवा कलाकार की है। इन पात्रों को सीरियसली नहीं लिया गया। हांलांकि अंधे पिता की कलाकारी अच्छी है पर वह किसी भी हालत में बूढ़ा नहीं लगता एेसा लगता है कि नाटक का पात्र हो। परगट की मां का रोल कमाल का है हीरोइन गगन का भी ठीकठाक ही है। फिल्म का संगीत अच्छा है पर गानों पर ज्यादा मेहनत न होने के कारण हिट नहीं हो सकते। गाने दर्शकों के मुंह पर चढ़ने चाहिए। फिल्म का अंत भी कुछ मजेदार नहीं है। फिल्म को एेसा लगता है कि फिल्म को किसी जल्दी तरह जल्दी से पूरा करना था अौर पेश करना था। अोवर अाल रेटिंग 3 स्टार ।
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