क्या दलित हमेशा से ही दबे,कुचले व शोषित रहे?

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क्या दलित हमेशा से ही दबे,कुचले व शोषित रहे?
आज जहन में एक प्रश्न उठता है कि क्या दलित हमेशा दबे कुचले व शोषित ही रहे? आज हम इस फैलाए गए भ्रम की विवेचना करते हैं। जब से यह सृष्टि बनी पहले काला आया या गोरा, पहले स्वर्ण आए या दलित। पहले पुरुष आया या नारि। हम सिर्फ मानव की बात करेंगे। सभी कहेंगे कि सिर्फ मानव ही आया पहले न तो कर गोरा न ही काला, दलित या स्वर्ण। जब सब एक साथ आए तो क्या एक ही पक्ष का मानव सदा शोषित व प्रताडि़त होता रहा? कहने का मतलब आज जो लोग अपने आप को दलित कहते हैं क्या वे जब से सृष्टि बनी प्रताडि़त व शोषित होने का प्रमाणपत्र लेकर पैदा हुए थे या भगवान ने उन्हें कहा था कि हमेशा के लिए दलित व प्रताडि़त ही रहो।
ऐसा बिल्कु ल भी नहीं है। जो आज स्वयं को दलित कहते हैं उनका इतिहास इतना गौरवशाली रहा है कि यदि उन्हें यह बताया जाए तो  वे अपने पूर्वजों गर्व करेंगे। लेकिन प्रताडऩा के साथ अन्य वर्गों के खिलाफ उनके दिमागों में पूरी तरह से नफरत भर कर राजनीतिक रोटियां सेकी जाती हैं। आइए जरा दलितों के गौरवमई इतिहास पर नजर डालते हैं।  भगवान कृष्ण यदुवंशी थे। यादव आज ओबीसी हैं। कर्ण चाहे माता कुंती के पुत्र थे लेकिन वह सूद पुत्र के रूप में जिए और अपनी प्रतिभा से राजा बने। इनके वंशजों को जाट कहा जाता है। महॢष वेद व्यास जी मछुआरिन के पुत्र थे और उन्होंने पूरा महाभारत रच दिया। उनकी संताने जो नियोग विधी से हुईं वे धृतराष्ट्र,पांडु व विधुर के रूप में आगे आई। इनके आगे पुत्र कौरव व पांडव हुए। इसके बाद रामायण काल में महाप्रतापी रावण जिनके पिता ब्राह्मण थे और माता दानव कुल से थीं, भगवान वाल्मीकि, माता शबरी, माता मंदोदरी, माता तारा, माता अहिल्या, विभीषण, जामवंत जी आदि स्वर्ण कुल के तो नहीं थे लेकिन अपनी प्रतिभा से वे बहुत ही आगे निकल चुके थे। भगवान शिव असुरों के देव, शुक्राचार्य जी ब्राह्मण तो थे लेकिन वे दानवों के गुरु थे।
अब थोड़ा आगे कलियुग के इतिहास की तरफ देखें तो पाते हैं कि राजा नंद महा प्रतापी राजा हुए। राजा चंद्रगुप्त मौर्य ने तो मौर्य वंश की स्थापना की। आचार्य चाणक्य ने उसे दलित वनवासी से राज सिंहासन तक पहुंचाया और वह चक्रवर्ती राजा बना। फिर बिंदुसार व अशोक ने मौर्य वंश को आगे बढ़ाया। आज हम जिन हजारों साल प्राचीन मंदिरों को देखते हैं तो सभी आम लोगों के द्वारा ही बनाए गए थे। मंदिरों को देखकर पता चल जाता है कि उनमें कितनी श्रद्धा होगी कि भगवान को इन मंदिरों में आना ही पड़ा। भक्ति व संत मार्ग में भी दलितों कई महान विचारधाराएं संसार को दी। दुनिया भर में जिंक व लोहे को ढाल कर हथियार बनाने का काम भारतीय कारिगर ही जानते थे और सारे विश्र में इनकी ही तूती बोलती थी। कहते हैं कि ये लोग कतने धनवान थे कि राजा कि फौज का भी खर्च उठाने में सक्षम थे।  सिल्क, भवन निर्माण,मीनाकारी, धरती में पानी खोजकर कुएं बनाना, आभूषण बनाना, हीरे तराशना, चमड़ा रंगना, बनाना, लाख का काम,हाथी दांत से कारिगरी, जड़ी बूटियों का ज्ञान आदि हजारों ऐसे काम थे जिनमें इनकी ही दक्षता थी।
ये लोग बहुत धनवान, प्रतिभाशाली और समाज में अपना श्रेष्ठ स्थान रखते थे। कालांतर में ये लोग गरीब इसलिए हो गए क्योंकि ये समय के अनुसार मार्किट की जरूरतों को पूरा नहीं कर सके। उद्योगिकीकरण आने से इनके धंधे चौपट हो गए। ये उसी तरह है जिस तरह आप देखते हो कि आज जो फोटोग्राफर अपने काम को डिजीटल नहीं कर सके वे डूब गए। आप पुराने फोटोग्राफरों की दुकानों पर सिर्फ पुरानी ब्लैक एंड वाईट फ्रेम ही देखेंगे। इसी प्रकार अन्य धंधों का भी हाल हुआ। जमीनों के रेट बढऩे से जाट बैठ बिठाए ही अरबपति बन गए जो किसीसमय गरीबी में दिन गुजार रहे थे।  आज वर्तमान में चमड़ा उद्योग, मछली उद्योग, होटल व्यापार, फिल्म इंटस्ट्री आदि में तो जाति से दलित कहलाने वालों का तो दबदबा है। दक्षिण भारत में तो 90 प्रतिशत कारोबार तथाकथित दलितों के हाथ में  है। बाकि आज जिसके पास धन व ज्ञान नहीं है वह आज दलित है। दलितों का इतिहास इतना गौरवशाली है कि यदि किसी दलित को उसपर 10 लाइनें लिखने को कहा जाए तो वह नहीं लिख पाएगा लेकिन प्रताडऩा का बोझ लिए वह सारी उम्र ही गुजार देगा। कोई राजनेता भी यह नहीं चाहता कि उन्हें पता चले कि उनके पूर्वज कितने महान थे। यदि उनमें गर्व हो गया तो उनकी दुकानदारी बंद हो जाएगी।

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