भारतीय धार्मिक विचारधाराओं का कैसे विश्व के देशों में विस्तार हुआ

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भारतीय धार्मिक विचारधाराओं का कैसे विश्व के देशों में विस्तार हुआ
अक्सर यह प्रश्न किया जाता है कि यदि भारतीय धर्म या विचारधाराएं इतना महान थीं तो विश्व में क्यों नहीं फैली? क्यों ईसाई व इस्लाम धर्म फैला? इसको मामने वाले इतने ज्यादा गिणती में क्यों हैं। लगभग 2 हजार पहले जब ये दोनों रिलीजन पैदा नहीं हुए थे तो पूरे विश्व में पैगेन व सनातन धर्म को मानने वाले लोग थे। भारत वर्ष में धर्म कभी भी राजनैतिक नहीं रहा। एक राजा दूसरे राजा से लड़ते थे। हारने वाले
राजा को कुछ शर्तें माननी होती थीं और यदि वह अधीनता स्वीकार कर लेता तो उसे जीतने वाले राजा के अधीन रहना होता था। या फिर उसे देश छोड़ कर जाना होता था। इस दौरान युद्ध नियमों का कठोरता से दोनों पक्ष पालन करना होता था। जीतने वाला राजा व उसके सैनिक महिलाओं,बूढ़ों व बच्चों पर हथियार नहीं उठाते थे। हारने वाले राज्य की प्रजा को धर्म के नाम पर सताया नहीं जाता था। सब कुछ वैसा ही रहता था। देश का धन भी देश में ही रहता था। भारतीय राजाओं  ने कभी किसी विदेशी देश पर आक्रमण नहीं किया। लेकिन फिर भी हिन्दू व बौद्ध धर्म कंबोडिया, इंडोनेशिया, चीन, जापान, कोरिया, मालदीव, अफ्रीका के कुछ देशों उत्तरी अमेरिका में पहुंच चुका था। आज भी यहां समय-समय पर होती खुदाई में भारतीय धर्मों के अवशेष मिलते हैं। कहने का मतलब यह है कि भारत ने कभी भी किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया लेकिन फिर भी इन देशों में धर्म का फैलाव स्वत हो चुका था। कम्बोडिया देश के विशाल शिव मंदिर इसकी मिसाल हैं। कोई हमला नहीं, कोई रक्तपात नहीं, किसी का जबरन धर्म परिवर्तन नहीं सब कुछ अपने आप हुआ। अशोक राजा ने भिक्षुओं को धर्म का प्रचार करने भेजा और वे सफल भी हुए। पूरे एशिया महाद्वीप में भारतीय विचारधाराओं का ही बोलबाला था। इब्रहमिक रिलीजनों के पैरोंकार राजाओं की तरफ से किए गए रक्तपात को सारी दुनियां भूली नहीं है। धर्म के नाम पर कार्य आज तक जारी है। आज वर्तमान में विश्व को भारतीय दर्शन की जरूरत है। इसके पालन से ही नफरत खत्म होगी व धर्म फैलेगा। 

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