एक सभ्य समाज में अपराधी तत्व कैसे पनपते हैं
एक सभ्य समाज में अपराधी तत्व कैसे पनपते हैं
एक शहर के हिस्से में धनवान लोग रहते थे। बहुत ही मेहनती, पढ़े लिखे व समझदार लोग थे। जरूरतमंदों की सेवा भी करते थे। धन से धार्मिक कार्य भी मिलकर करते थे। इसी दौरान वहां के लोगों को लूटने के लिए कुछ लुटेरे सक्रिय हो गए। उन्होंने कुछ लोगों को जान से मारने की धमकी दी कि यदि आपने अपने रंगदारी नहीं दी तो वे उनके बच्चों का अपहरण कर लेंगे और परिजनों की हत्या कर देंगे।
हर किसी को अपने व्यापार व धन की फिक्र हो गई। कुछ तो धमकाने से डर गए और रंगदारी देने लग पड़े। इस तरह लुटेरों का काम चल पड़ा। पहले वे थोड़े-थोड़े पैसे मांगते थे। फिर उनका लालच बढ़ गया और वे ज्यादा की मांग करने लगे। लुटेरों की संख्या भी बढ़ गई थी। अब कुछ लोग धन देने में आना-कानी करने लगे,लेकिन उनमें से किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि वे पुलिस तक जा सकते। इसी दौरान धन
देने से इंकार करने पर लुटेरों ने एक धनी की हत्या कर दी। कुछ की जवान लड़कियों को भी उठा लिया गया। इससे वे और डर गए और जान बचाने के लिए रंगदारी देने लग पड़े। शिकायत न मिलने पर पुलिस भी सबकुछ जानते हुए चुप रही। कुछ को तो हिस्सा भी पहुंचने लगा।
अब लोग इनसे परेशान हो गए थे कि कैसे इनसे छुटकारा पाया जाए। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। इनमेंं से कुछ तो अपने प्रभाव से विधायक व मंत्री भी बन बैठे थे। पुलिस व प्रशासन पर अब ये अपना आर्डर चलाते थे। अब इन अमीर लोगों ने इसमें भलाई समझी किबुजदिलों की तरह अपनी पापर्टी व व्यापार औने- पौने दामों में बेचकर निकल लिया जाए और ये निकल गए और इनके घरों व कारोबारों पर इन लुटेरों का कब्जा हो गया। ये लोग अब समझ गए कि सभ्य व अमीर होना काफी नहीं है, ऐसे लुटेरों व खर पतवारों से निपटने के लिए उन्हें परिशिक्षित भी होना पड़ेगा।
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