दूसरों के विश्वास व श्रद्धा को परस्पर आदर कैसे देना है

दूसरों के विश्वास व श्रद्धा को परस्पर आदर कैसे देना है

जब तक चालाकी, हिंसा, लालच व जबरन किसी के विश्वास व श्रद्धा को तोड़ा जाना जारी रहेगा, इस संसार में कभी भी शांति नहीं हो सकती। संसार में हो रही हिंसा का सबसे बढ़ा कारण एक- दूसरे के विश्वास व श्रद्धा का मजाक उड़ाना और उसे खत्म करके अपने विचार उस पर लादने का काम करना। मैं जब रास्ते से गुजर रहा था तो देखा कि भीषण ठंड में घुटनों तक पानी में खड़े होकर महिलाएं सूर्य देव को अर्ग दे रही थीं, मेरा मन श्रद्धा से भर गया, भगवान के लिए इतना प्यार। वे सूर्य के रूप में ईश्वर को याद कर रही थीं। मेरे साथ मेरा एक दोस्त जो दूसरे धर्म का था उनका मजाक उड़ाने लगा, कहने लगा कि क्या ऐसे भगवान मिल जाएगा, या खुश हो जाएगा। मैंने उसे समझाया कि माना कि तुम्हारा इसमें विश्वास नहीं है और कहीं न कहीं इसमें नफरत भी भरी गई है, लेकिन हमें उनकी नजर से देखना होगा। उनकी नजर में आगाध प्यार, विश्वास व श्रद्धा है। इसी प्रकार मैं जब अपने ईष्ट भगवान की मूर्तियों को देखता हूं तो भाव से भर जाता हूं। मेरे को भी पता है कि मूर्तियां पाषाण हैं पर वे मेरे लिए प्राण रूप हैं। मैं अपने पिता के चित्र व पुत्र की तस्वीर से भी उतना ही प्यार करता हूं जितना उनसे। मां अपने बच्चों की तस्वीरों व कपड़ों से भी स्नेह रखती है।
जो व्यक्ति इन बातों में विश्वास नहीं रखता जब उसके निजी विश्वास की बात आती है तो उसका नजरिया बिलकुल अलग होता है।
एक मुस्लिम महिला ने कहा कि ये जो परस्पर आदर का मामला है बहुत ही अच्छा है। मैंने कहा हां बेशक पर ये उतना आसान नहीं है।
जैसे कि मेरा विश्वास है कण-कण में भगवान है, मैं मूर्तियों को पूजता हूं, मैं स्त्री लिग को भगवान यानि देवी के रूप में भी मानता हूं, मैं वेदों, उपनिषदों पर भी विश्वास करता हूं, मैं मानता हूं कि प्राणियों में भी आत्मा होती है और जीवों की बिना किसी कारण हत्या का भी विरोधी हूं।
क्या आप मेरी इन मान्यताओं को आदर देंगी? यह पूछने पर वह चुप हो गई गुस्से से कहने लगी इन बातों को मानने से इस्लाम मना करता है, यह कुफ्र है।
यह परस्पर आदर का मामला बहुत ही गम्भीर है। इस बारे में सभी बच्चों , बड़ों को शिक्षित किया जाना चाहिए। यह एक दूसरे को बर्दाश्त करने जैसा मामला भी नहीं है। आप दूसरे के विचारों से असहमत हो सकते हैं लेकिन आपको इसके विचारों से असहमत होना भी सीखना होगा।
विदेशी हमलावर इतने हिंसक व नफरत से भरे थे कि उन्होंने विश्व में जहां कहीं भी हमला किया वहां के लोगों के पूजा स्थलों, संस्कृति को बहुत ही हिंसक तरीके से खत्म कर दिया पूरे यूरोप, अमेरिका से मूल पेगेन धर्मों व उनके लोगों का संहार कर दिया। वे अब म्यूजियमों की शोभा बढ़ा रहे हैं। भारत में भी ऐसा ही हुआ करोड़ों का धर्मपरिवर्तन करके उनको अपनी मूल विचारधारा से ही तोड़ दिया। अब वे मानसिक तौर पर उतने ही हिंसक व मूल विचारधारा के प्रति नफरत से भरे हैं।
एक सम्प्रदाय अपनी पवित्र पुस्तक को भगवान या गुरु का रूप मानता है, उस पर महंगे कपड़े चढ़ाता है, सिर पर रखकर नंगे पांव चलता है, उसे एसी कमरों में आरामदाय पलंग पर विराजमान करता है, अपने पवित्र सरोवर में स्नान करता है आदि। लेकिन जब ऐसा करता जब दूसरे धर्म या विचारधारा के साधक को देखता है तो उसका जमकर विरोध करता है। मसलन एक अन्य धर्म का साधक जब अपने ईष्ट के चित्र या मूर्ति से ऐसा करता है तो उसके प्रति नफरत वाली शब्दावली प्रयोग की जाती है। अपने विश्वास को ऊपर रखो लेकिन यह भी ध्यान रखो कि आप दूसरे के विश्वास का आदर करो। जब आप किसी के घर में मेहमान के तौर पर जाते हैं तो आप उसके घर का सामान इधर-उधर तो नहीं करते। जहां उसका सामान लगा होता है जो उसके घर के नियम होते हैं उनका पान करते हो। उसी प्रकार विश्वास का भी मामला है।
ज्योतिष व वास्तु को मानने या न मानने वाले बहुत होंगे। कुछ लोगों ने इसका अध्ययन नहीं किया बस वे पीढ़ी दर-पीढ़ी किए जा रहे विरोध को आगे बढ़ाते हैं। जब कुछ लोग इसका अध्ययन करते हैं तो इस ज्ञान के, अंकों के समुद्र में ही लीन हो जाते हैं।

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