महान लेखक, चिंतक, मनोविज्ञानिक, दार्शनिक राजीव मल्हौत्रा से मैं कैसे मिला
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महान लेखक, चिंतक, मनोविज्ञानिक, दार्शनिक राजीव मल्हौत्रा से मैं कैसे मिला
सन 2006 में मैंने अपने घर में वाईफाई इंटरनेट लगाया था। क्योंकि मैं ज् योतिष,धर्म व दर्शन के बारे में ज्ञान अर्जित करना चाहता था। ज्योतिष
को मैं प्रोफैशनल तौर 1999 में ही अपना चुका था लेकिन आय न होने के कारण मुझे नौकरी करनी पड़ रही थी। थोड़ा- थोड़ा इनवैस्ट करना पड़ता और काम जारी रखना पड़ता। बीच में वैब साइट का काम चलता रहता था। इंटरनेट को खंगालना जारी रहती। यूट्यूब पर विचारों को सुनता रहता। एक दिन मुझे एक वीडियो मिला जिसमें राजीव जी अंग्रेजी में सम्बोधित कर रहे थे। वीडियो की क्वालिटी बडिय़ा नहीं थी। मैंने शुरू में सुना और फिर वीडियो को नहीं देखा। दिमाग में एक तरह का घमंड भी था कि मैं ज्यादा जानता हूं। मैंने जितना अध्ययन किया है, इसने क्या किया होगा। यह क्या जानता होगा। ऐसे कुछ दिन बीत गए। कुछ दिन बाद राजीव जी का एक हिन्दी वीडियो हम कौन हैं-विभिन्नता बारे था,सामने आया। अमेरिका में हिन्दी परिवार के सदस्य दविन्द्र सिंह उनका परिचय दे रहे थे कि कैसे इस महापुरूष ने इस क्षेत्र में कदम रखा। कई कम्पनियों के मालिक होने के बाद कैसे इन्होंने 42 वर्ष की उम्र में धर्म सेवा का प्रण लिया। जब इनका विभिन्नता के बारे में लैक्चर सुना तो मैं सन्न रह गया। इन्होंने मेरी पूर्वधारणाओं की धज्जियां उड़ा दीं। मुझे जो पढ़ाया या दिखाया गया था वह हवा हो गया। मेरे पैरों के तले से जमीन खिसक गई। जब किसी का भम्र टूटता है तो बहुत तकलीफ होती है। मैंने धीरे-धीर इस महान महापुरूष के यूट्यूब पर लगभग सभी लैक्चर सुन डाले।
नौकरी से 20-25 दिनों की छुट्टियां ली और लैक्चर सुने। इनकी लिखी पुस्तकें फ्लिपकार्ट से मंगवाई और पढ़ डाली। दिमाग में बैठा घमंड क हीं भाग गया था। फिर मैंने फेसबुक आदि पर इस लेखक को प्रोमोट करना शुरू कर दिया। आज 12 साल हो गए मैं उनके हर लैक्चर को सुनता हूं और मनन करता हूं। अब मैं समझ सकता हूं कि इनसाइडर और आऊटसाईडर कौन है।
एक बात मैं जो समझ पाता हूं कि यदि सोशल मीडिया न होता तो इस लेखक से मैं शायद कभी भी न मिल पाता क्योंकि इस लेखक की रचनाओं को प्रिंट मीडिया, मेन स्ट्रीम मीडिया या कह लो माफिया जिस पर वामपंथियों, तथाकथित सैकुलर,लिब्रल गैंग का कब्जा है,रद्दी की
टोकरी में फैंक देता था। कैसे इस लेखक की रचनाओं पर रोक लगाई जाती थी। कैसे पैसे देकर जबाव पहले दिया जाता था लेखक की रचनाबाद में लगाई जाती थी। मैं शुक्रगुजार हूं इस महान लेखक का जिसने अपने जीवन के वर्ष देकर हमारा मार्ग दर्शन किया। आज मेरे भी फेसबुक पर 26 हजार से अधिक फालोवर हैं और मेरी कोशिश रहती है कि यह लेखक दुनिया के हर नागरिक तक पहुंचे। ईश्वर इन्हें लम्बी उम्र दे ताकि यह हमारा मार्गदर्शन करते रहें। सोशल मीडिया का धन्यवाद जिसने मुझे इस महान इंसान से मिलवाया।
महान लेखक, चिंतक, मनोविज्ञानिक, दार्शनिक राजीव मल्हौत्रा से मैं कैसे मिला
सन 2006 में मैंने अपने घर में वाईफाई इंटरनेट लगाया था। क्योंकि मैं ज् योतिष,धर्म व दर्शन के बारे में ज्ञान अर्जित करना चाहता था। ज्योतिष
को मैं प्रोफैशनल तौर 1999 में ही अपना चुका था लेकिन आय न होने के कारण मुझे नौकरी करनी पड़ रही थी। थोड़ा- थोड़ा इनवैस्ट करना पड़ता और काम जारी रखना पड़ता। बीच में वैब साइट का काम चलता रहता था। इंटरनेट को खंगालना जारी रहती। यूट्यूब पर विचारों को सुनता रहता। एक दिन मुझे एक वीडियो मिला जिसमें राजीव जी अंग्रेजी में सम्बोधित कर रहे थे। वीडियो की क्वालिटी बडिय़ा नहीं थी। मैंने शुरू में सुना और फिर वीडियो को नहीं देखा। दिमाग में एक तरह का घमंड भी था कि मैं ज्यादा जानता हूं। मैंने जितना अध्ययन किया है, इसने क्या किया होगा। यह क्या जानता होगा। ऐसे कुछ दिन बीत गए। कुछ दिन बाद राजीव जी का एक हिन्दी वीडियो हम कौन हैं-विभिन्नता बारे था,सामने आया। अमेरिका में हिन्दी परिवार के सदस्य दविन्द्र सिंह उनका परिचय दे रहे थे कि कैसे इस महापुरूष ने इस क्षेत्र में कदम रखा। कई कम्पनियों के मालिक होने के बाद कैसे इन्होंने 42 वर्ष की उम्र में धर्म सेवा का प्रण लिया। जब इनका विभिन्नता के बारे में लैक्चर सुना तो मैं सन्न रह गया। इन्होंने मेरी पूर्वधारणाओं की धज्जियां उड़ा दीं। मुझे जो पढ़ाया या दिखाया गया था वह हवा हो गया। मेरे पैरों के तले से जमीन खिसक गई। जब किसी का भम्र टूटता है तो बहुत तकलीफ होती है। मैंने धीरे-धीर इस महान महापुरूष के यूट्यूब पर लगभग सभी लैक्चर सुन डाले।
नौकरी से 20-25 दिनों की छुट्टियां ली और लैक्चर सुने। इनकी लिखी पुस्तकें फ्लिपकार्ट से मंगवाई और पढ़ डाली। दिमाग में बैठा घमंड क हीं भाग गया था। फिर मैंने फेसबुक आदि पर इस लेखक को प्रोमोट करना शुरू कर दिया। आज 12 साल हो गए मैं उनके हर लैक्चर को सुनता हूं और मनन करता हूं। अब मैं समझ सकता हूं कि इनसाइडर और आऊटसाईडर कौन है।
एक बात मैं जो समझ पाता हूं कि यदि सोशल मीडिया न होता तो इस लेखक से मैं शायद कभी भी न मिल पाता क्योंकि इस लेखक की रचनाओं को प्रिंट मीडिया, मेन स्ट्रीम मीडिया या कह लो माफिया जिस पर वामपंथियों, तथाकथित सैकुलर,लिब्रल गैंग का कब्जा है,रद्दी की
टोकरी में फैंक देता था। कैसे इस लेखक की रचनाओं पर रोक लगाई जाती थी। कैसे पैसे देकर जबाव पहले दिया जाता था लेखक की रचनाबाद में लगाई जाती थी। मैं शुक्रगुजार हूं इस महान लेखक का जिसने अपने जीवन के वर्ष देकर हमारा मार्ग दर्शन किया। आज मेरे भी फेसबुक पर 26 हजार से अधिक फालोवर हैं और मेरी कोशिश रहती है कि यह लेखक दुनिया के हर नागरिक तक पहुंचे। ईश्वर इन्हें लम्बी उम्र दे ताकि यह हमारा मार्गदर्शन करते रहें। सोशल मीडिया का धन्यवाद जिसने मुझे इस महान इंसान से मिलवाया।
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