महाराष्ट्र में हिंसा-इनसाईडर व आऊटसाईडर स्टोरी
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बात 13 अप्रैल 1919 दिन वैसाखी वाला स्थान अमृतसर से शुरु करते हैं। जनरल डायर ने जलियांवाला बाग में निहत्थे भारतीयों पर गोलियां चलवाने का आदेश दिया। आपको हैरानी होगी कि गोलियां चलाने वाले सैनिक भारतीय गोरखा थे जो कि अंग्रेजों के लिए काम कर रहे थे। मारने वाले भी भारतीय व मरने वाले भी भारतीय।
अब इससे थोड़ा और पीछे चलते हैं। अंग्रजों के साथ मिलकर महाराजा रणजीत सिंह को हराने
वाले जिमीदार, मिसलों के सरदार व बारूद की जगह भूसा भरने वाले कौन थे। वे लोग थे जो अंग्रेजों ने अपनी तरफ कर लिए थे।
अब पेशवाओं से लडऩे वाले अंग्रेज थे और उनके सैनिक थे भारतीय सैनिक। अंग्रेज उनके थे आका। औरंगजेब से जब शिवाजी लड़ रहे थे तो वे उसकी राजपूत,मराठा सैनिक टुकडिय़ों से लड़ रहे थे। यह बिलकुल ऐसा ही है जैसे कोई भारतीय बड़ी अमेरिकन कम्पनी अच्छी सैलरी में काम करता है। वह उस कम्पनी के आदेशों का पालन करता है। अब बात करते हैं इनसाईडर स्टोरी की- अंग्रेजों या अन्य विदेशी हमलावरों के खिलाफ लडऩे
वाला इनसाईडर कहलाता है। आऊटसाईटडर -अंग्रेजों के साथ मिलकर अन्य भारतीयों के खिलाफ लडऩे वाले आऊटसाईडरकहलाते हैं।
अब एक लेखक अमेरिकन कम्पनी के साथ काम करता है और उसके कहे अनुसार साहित्य लिखता है तो वह भी आऊटसाईडर कहलाएगा। भारत विरोधियों के साथ मिलकर काम करने वाला आऊट साईडर ही कहलाएगा। अब आऊटसाऊडर कभी भी इनसाईडर इसका उल्टा हर समय सकता है। कई भारतीय अंग्रेजों की नौकरी करते थे जब उन्हें अंग्रेजों की असलीयत पता चली तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी इौर इनसाईडर हो गए।
वर्तमान में भी ऐसा ही चल रहा है। मोहरे आगे किए जाते हैं जबकि मुख्य आका पर्दे के पीछे काम करते हैं।
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