धर्म और आध्यामिक्ता क्या है इसमें क्या अंतर है
धर्म और आध्यामिक्ता क्या है इसमें क्या अंतर है
आज कल विदेशों व भारत में एक नई जमात ने जन्म लिया है वह है आध्यात्मिकता। इसे स्प्रीचुल कह सकते हैं। इस विचारधारा पर चलने वाले लोग कहते हैं कि हम किसी धर्म विशेष को नहीं मानते और न ही नकारते हैं। हम सिर्फ आध्यात्मिक हैं। हम किसी धर्म विशेष से नहीं जुड़े।
इनके प्रमुख भी ऊपर से ऐसा ही कहते दिखते हैं। वे कहते हैं कि हम आध्यात्मिकता सिखाते हैं और किसी धर्म का प्रचार नहीं करते। ये कहते हैं कि सभी धर्म एक से हैं और सभी हमें परमात्मा तक पहुंचाते हैं। सारी संसार माया है और इस माया के बंधन से मुक्त होना है। यही आध्यात्मिक इतने पदार्थवादी हैं कि जब अपने पर बात आती है तो ये लोग महंगे वस्त्र पहनते हैं, अच्छी चीज खरीदने के लिए 10 जगह मोल भाव करते हैं। अपने लिए सबसे बढिय़ा चीज की अपेक्षा करते हैं। अपने बच्चों को सबसे बढिय़ा स्कूलों में भेजते हैं। उस समय
ये भूल जाते हैं कि सब कुछ तो परमात्मा का ही है,किसी में कोई अंतर नहीं, ये तो सबकुछ यहीं रह जाना है। लेकिन यदि उन्हें कोई कहे कि आपके धर्म पर आक्रमण हो रहा है, लोग भूख से मर रहे हैं तो ये लोग परमात्मा का नाम लेकर इन समस्याओं से पीछा छुड़वाने की कोशिश करते हैं। धर्म के मामले में ऐसा नहीं है यह समस्याओं से जूझना व उनके निवारण के लिए लडऩा सिखाता है। आध्यात्मिक लोगों को इससे
कोई मतलब नहीं कहां क्या हो रहा है उन्हें सिर्फ आध्यात्म से मतलब है। जब एक दिन मर ही जाना है को इतने प्रपंच करने की क्या जरूरत है। पश्चिम में लोग अपने धर्म से ऊब चुके हैं अब वे कहते हैं कि हमें धर्म से कुछ लेना-देना नहीं,हम आध्यात्मिक हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है यदि लोगों को कहा जाए कि वे धर्म छोड़ दें और सिर्फ आध्यात्मिक हो जाएं तो वे ऐसा कहने वालों को सिरे से नकार देंगे इसलिए आध्यात्मिकता को धर्म का तड़का लगा कर पेश किया जाता है। असल में आध्यात्मिकता के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों को साफ्ट विचारधारा से जोड़ा जाता है। आज ये लोग भारतीय उत्सवों को भी नहीं मनाते। जब इनसे पूछा जाता है तो ये लोग कुछ न कुछ बहाना बना देते हैं। दीवाली पर कहते हैं कि ये तो सिर्फ दीयों का त्यौहार है इसलिए हम भी दीए जला देते हैं इससे अधिक कुछ नहीं है।
आज कल विदेशों व भारत में एक नई जमात ने जन्म लिया है वह है आध्यात्मिकता। इसे स्प्रीचुल कह सकते हैं। इस विचारधारा पर चलने वाले लोग कहते हैं कि हम किसी धर्म विशेष को नहीं मानते और न ही नकारते हैं। हम सिर्फ आध्यात्मिक हैं। हम किसी धर्म विशेष से नहीं जुड़े।
इनके प्रमुख भी ऊपर से ऐसा ही कहते दिखते हैं। वे कहते हैं कि हम आध्यात्मिकता सिखाते हैं और किसी धर्म का प्रचार नहीं करते। ये कहते हैं कि सभी धर्म एक से हैं और सभी हमें परमात्मा तक पहुंचाते हैं। सारी संसार माया है और इस माया के बंधन से मुक्त होना है। यही आध्यात्मिक इतने पदार्थवादी हैं कि जब अपने पर बात आती है तो ये लोग महंगे वस्त्र पहनते हैं, अच्छी चीज खरीदने के लिए 10 जगह मोल भाव करते हैं। अपने लिए सबसे बढिय़ा चीज की अपेक्षा करते हैं। अपने बच्चों को सबसे बढिय़ा स्कूलों में भेजते हैं। उस समय
ये भूल जाते हैं कि सब कुछ तो परमात्मा का ही है,किसी में कोई अंतर नहीं, ये तो सबकुछ यहीं रह जाना है। लेकिन यदि उन्हें कोई कहे कि आपके धर्म पर आक्रमण हो रहा है, लोग भूख से मर रहे हैं तो ये लोग परमात्मा का नाम लेकर इन समस्याओं से पीछा छुड़वाने की कोशिश करते हैं। धर्म के मामले में ऐसा नहीं है यह समस्याओं से जूझना व उनके निवारण के लिए लडऩा सिखाता है। आध्यात्मिक लोगों को इससे
कोई मतलब नहीं कहां क्या हो रहा है उन्हें सिर्फ आध्यात्म से मतलब है। जब एक दिन मर ही जाना है को इतने प्रपंच करने की क्या जरूरत है। पश्चिम में लोग अपने धर्म से ऊब चुके हैं अब वे कहते हैं कि हमें धर्म से कुछ लेना-देना नहीं,हम आध्यात्मिक हैं। लेकिन भारत में ऐसा नहीं है यदि लोगों को कहा जाए कि वे धर्म छोड़ दें और सिर्फ आध्यात्मिक हो जाएं तो वे ऐसा कहने वालों को सिरे से नकार देंगे इसलिए आध्यात्मिकता को धर्म का तड़का लगा कर पेश किया जाता है। असल में आध्यात्मिकता के नाम पर दूसरे धर्म के लोगों को साफ्ट विचारधारा से जोड़ा जाता है। आज ये लोग भारतीय उत्सवों को भी नहीं मनाते। जब इनसे पूछा जाता है तो ये लोग कुछ न कुछ बहाना बना देते हैं। दीवाली पर कहते हैं कि ये तो सिर्फ दीयों का त्यौहार है इसलिए हम भी दीए जला देते हैं इससे अधिक कुछ नहीं है।
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