अमेरिका के मूल निवासियों की तरह विदेशी भारतीयों को क्यों नहीं खत्म कर सके

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अमेरिका के मूल निवासियों की तरह विदेशी भारतीयों को क्यों नहीं खत्म कर सके

अमेरिका में जब मूल रेड इंडियन का विदेशी हमलावरों के खात्मा कर दिया उनकी जमीनों पर कब्जे कर लिए तो क्या कारण हैटन कि यही विदेशी भारतीयों को नहीं खत्म कर सके। जब विदेशी हमलावरों ने भारत में हमला किया तो उनकी मंशा भारत जो उस समय सोने की
चिडिय़ा कहलाता था,को लूटने की थी। वे चाहते थे कि यहां से लूट का माल अपने देशों में ले जाया जाए। भारत के लोग दुनिया के एक नम्बर के बढिय़ा कारिगर थे। लोहे व जिंक को ढालकर बढिय़ा हथियार पूरी दुनिया को यहीं से सप्लाई होते थे। सिल्क में भी इनका जबाब नहीं था। सिल्क विदेशों में सोने से महंगा बिकता था। भवन व वास्तु कला में भी भारतीय कारिगरों का कोई मुकाबला नहीं था। आभूषणों ,हीरें
आदि की नक्काशी में निपुण थे। यह कालाएं पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती रहती थी। जब दुनिया के लोग पढऩा भी नहीं जानते थे तो यहां
के लोग वेदों के ज्ञाता थे। ज्योतिष, आयुर्वेद व योग में यहां के लोग दक्ष थे। अरबी हमलावरों ने यहां आकर अपना धर्म फैलाने व यहां के लोगों का धर्मपरिवर्तन करवाने के लिए उनका विरोध करने वालों का तो नरसंहार किया लेकिन जो कारिगर व दक्ष लोग थे उनसे काम लिया। वे लूटपाट कर वापस जाना चाहते थे पर यहां का ऐश्वर्य देखकर यहीं रह गए। इसी प्रकार जब अंगे्रज,पुर्तगाली आदि हमलावर यहां
आए थे तो उनका मकसद यहां से माल तैयार करवाकर यूरोप में ऊंचे दामों पर बेचना और बड़ा मुनाफा कमाना। इस तरह उन्हें भारतीय दक्ष कारिगरों से काम लेना था न कि उन्हें मारकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारनी थी। ये बातें रेड इंडियन में नहीं थी उनके पास भूमि तो थी लेकिन
हुनर नहीं था, इसलिए वे उनके काम के नहीं थे। अंग्रेजों को तो कुछ राजाओं ने अपने राज्य भी सबलेट कर दिए थे। यह एक तरह की आऊटसोर्सिंग थी। मतलब हम राजाओं को उसी तरह सम्मान देंगे,उनका संरक्षण करेंगे जैसा वे कर रहे हैं। पर सेना उनकी होगी और इसके बदले
में वे राजाओं से धन लेंगे। ईसाई मिशनरियां ईस्ट इंडिया कम्पनी पर दबाव डालती थी कि उन्हें यहां काम करने दिया जाए। लेकिन अंग्रेज ऐसा
कोई पंगा नहीं लेना चाहते थे कि उनको माल कमाने में कोई परेशानी आए। इस प्रकार अंग्रेजों ने भारत को बनाने से पहले यहां स ेअकूत धन
लूटा। उन्होंने धन देकर अपनी सेनाओं में भारतीय को भर्ती किया और उन्हें भारतीय राजाओं के खिलाफ लड़ाया। उनकी तरफ से लड़ाई करने
वाली सेनाओं में 95 प्रतिशत भारतीय ही होते थे। 5 प्रतिशत अंग्रेज कमांडर इत्यादि होते थे जो युद्ध के मैदान में कम ही जाते थे या पीछे ही
रहते थे। इस प्रकार धन व अन्य तरह के लालच देकर भारतीयों को भारतीयों के खिलाफ ही लड़ाया जाता रहा।

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