क्या सत्य सनातन वैदिक धर्म बाकी मतों,पंथों को खत्म कर देगा?
क्या सत्य सनातन वैदिक धर्म बाकी मतों,पंथों को खत्म कर देगा?
कुछ मूढ़ कम पढ़े लिखे, भारतीय धाॢमक परम्मराओं का ज्ञान न रखने वाले अपने प्रचार में ऐसा कहते हैं कि हिन्दू धर्म अन्य धर्मों को खा जाएगा। ये तो ऐसा कहना हुआ कि एक मां अपने बच्चों को मार कर खा जाएगी। हिन््रदू धर्म ऐसा विशाल धर्म है कि यह लगभग सभी पंथ,सम्प्रदायों की जननी है। ये सभी इसी के पेट से निकले हैं। इसी ने इनका पालन पोषण भी किया। विदेशी हमलावरों से पहले भारत में बुद्ध
धर्म ने जन्म लिया। ये धर्म वैदिक परम्पराओं का विरोधी था लेकिन इतिहास में कहीं भी ऐसा वाक्या नहीं मिलता कि वैदिक धॢमयों ने बौद्ध धर्म अपनाने वालों पर हमला किया हो या इनका नरसंहार किया हो। गौतम बुद्ध बिना किसी सुरक्षा में गांव-गांव जाते और उनका स्वागत होता। हिन्दू वैदिक धर्म को मानने वाले अपनी इच्छा से बुद्ध की शरण में जा रहे थे। ऐसा समय आया कि अफगानिस्तान, पंजाब, बिहार,
उत्तर प्रदेश के इलाके बुद्ध हो गए। बिहार तो बौधियों का पवित्र स्थल बन गया था। हर वर्ग के लोग बुद्ध के अहिंसा, प्रेम व आत्म ज्ञान के मुरीद हो चुके थे। आदि शंकराचार्य जी के आने के बाद जब उन्होंने महान बौद्ध पंडितों को वाद-विवाद में हराया तो लोगों की मूल धर्म में वापसी हुई। इसके बाद अरबी हमलावरों के आने के बाद अफगानिस्तान, पंजाब, बिहार में बौद्धों का नरसंहार हुआ। नालंदा विश्वविद्यालय को जब आग लगाई गई तो इसमें रखी बहूमूल्य किताबें कई दिनों तक जलती रही थीं। ऐसा ही जैन धर्म के साथ भी हुआ।
बौद्ध धर्म भारत के बाहर लगभग पूरे ऐशिया में फैला,वह भी बिना किसी पर हमला किए। जहां-जहां ये हमलावर नहीं पहुंचे वहां ये धर्म बच गया। जैसे www.bhrigupandit.com लंका, कंबोडिया, मयांमार, तिब्बत आदि सदूर इलाके। इन इलाकों में आज भी बौद्ध मंदिर हिन्दू व जैन मंदिरों के साथ ही मिलते हैं। एलोरा-अजंता की गुफाएं इसका उदाहरण हैं।
इसी तरह अन्य पंथों के गुरु,अग्रणी हिन्दू धर्म में ही पैदा हुए और उनके विचारों को फैलने का मौका मिला। उनका अनुसरण करने वाले 99 प्रतिशत हिन्दू ही थे। यदि ये लोग इस्लाम में पैदा हुए होते तो क्या ऐसा सम्भव था कि ये अपना अलग सम्परदाय या पंथ चला सकते। ये सनातन धर्म ही है जो विचारों को पूरी स्वतंत्रता देता है और पंथ आदि को फलने फूलने का मौका भी। दूसरों के विचारों का आदर करता है, उनको खा नहीं जाता, क्योंकि मां अपने बच्चे को मारती नहीं पालती है, चाहे वो बड़ा होकर उसका पालन पोषण करे या ना।
आज इन सम्प्रदायों को मानने वालों को इस महान परम्परा का सम्मान करना चाहिए कि इनको पैदा होने, फलने-फूलने के लिए इसके लोगों का सहयोग मिला। इसलिए यह झूठ फैलाया जाता है कि यह किसी पंथ को खा जाएगा। यह धर्म किसी का धर्मपविर्तन करने के पक्ष में नहीं,क्योंकि यह मानता है कि सत्य तक पहुंचने के अलग-अलग मार्ग हो सकते हैं।
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