तुम न आए प्रीतम, मेरा श्रंृगार नहीं देख पाए
तुम न आए प्रीतम, मेरा श्रंृगार नहीं देख पाए
मैंने आंखों पे काजल, माथे पे टीका, गालों पे लाली लगाई थी,
आइना बार-बार देखा,बालों पे कंघी फिराई थी,
माला मोतियों की वक्ष पर मैं देख-देख मुस्कराई थी।
प्रीतम तुम आ जाते,
प्रीतम तुम नहीं आए , मेरा श्रंृगार नहीं देख पाए।
मैं तुम्हारे प्रेम की प्यासी, एक नजर तो देख लेते,
मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठता, मेरी नसों में रवानी होती,
तुम क्यों न आए, क्यों इंतजार करवाया।
प्रीतम आ जाओ इकबार, बस बाहों में भर लेना,
चूम लेना मुझको, इन अधरों के रस पी लेना,
मैं अपना मन हल्का कर लूंगी, प्यार तुम्हारे को आंचल में भर लूंगी,
पीया आ जाओ न इकबार बस इकबार।
कामाग्नि में मैं जलकर अंगार हो रही हूं,
प्रेम तुम्हारा पाने को बेताब हो रही हूं,
तुम मेरे कामदेव बन ऐसा खेल खेल जाते,
जन्मों की मेरी तन मन की प्यास बुझा जाते।
मेरा जिस्म मिट्टी न हो जाए, तुम आ जाते इकबार
ुपर प्रीतम तुम नहीं आए , मेरा श्रंृगार नहीं देख पाए।
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