क्या सनातन धर्म एक जीवन पद्धति ही है धर्म नहीं?
www.bhrigupandit.comक्या सनातन धर्म एक जीवन पद्धति ही है धर्म नहीं?
आजकल कुछ मूढ़ लोग जो समझते हैं कि वे धर्म के जानकार हैं। ऊंचे पदों पर बैठे एक माइंडसैट से सोचते हैं, कहते हैं कि सनातन धर्म सिर्फ एक जीवन पद्धति है। ये लोग हर चीज को धर्म के आयने से नहीं देखते उन अंग्रेजी स्कूलों के पढ़ाए गए पाठ्यक्रम से आयने से देखते
हैं जो ईसाई मिशनरियों के द्वारा चलाए जाते हैं। अब हम बात करते हैं जीवन पद्धति की। कुत्तों, गधों व अन्य जानवरों की भी अलग-अलग
जीवन पद्धति है क्या तो फिर वह भी धर्म होना चाहिए। कुत्ते अपना जीवन जीते हैं , गधे अपना जीवन वे जिस परिवेश में रहते हैं तो वह क्या धर्म है। कीट पतंगों, जलचरों, पक्षियों आदि सभी की अपनी-अपनी जीवन पद्धति है तो क्या इसेधर्म कह देेेंगे? ये लोग धर्म परिभाषा
जानने के लिए शंकराचार्य, संतों, मुनियों,गुरूअूों की सलाह नहीं लेंगे, उनसे नहीं पूछेंगे की धर्म क्या है। भगवान कृष्ण ने धर्म के बारे में क्या कहा, वेद क्या कहता है, उनसे नहीं पूछेंगे जिन्होंने इस धर्म में अपनी कई पीढिय़ां खपा दीं। ये भड़वे देव दत्त पटनायक,पंकज मिश्रा, वैंगी डोनियर, अरुंधती राय जैसे विधॢमयों की सलाह पर चलते हैं। बंद कमरे में अपने उच्च पदों का प्रभाव दिखाकर धर्म की परिभाषा देंगे। एपिक चैनल पर इन्हें ही बुलाएंगे और जब सनातन धर्म की बात हो रही होगी तो पीछे से डरावना म्यूजिक चलाएंगे। इन भड़वों के जाल में
कई भोले भाले सैकुलर टाइप के हिन्दू फंस जाते हैं।
धर्म क्या है? धर्म है संस्कृत के शब्द धृ से बना। धृ का अर्थ है जिसने इस सारे ब्रह्मांड के पकड़ा हुआ है। जैसे एक वृक्ष मजबूत जड़ों के सहारे
खड़ा रहता है। यह शाश्वत है, यह न पैदा हुआ,न किसी के द्वारा बनाया गया, यह हमेशा था। इसके बिना किसी का कोई अस्तिव नहीं।
ग्रह अपनी-अपनी परधि में रहकर आपस में न टकराते हुए सूर्य के ईर्द-गिर्द नियम अधीन घूम रहे हैं। एक पत्थर भी अपने अणुओं को इस तरह जकड़ कर रख रहा है। ऊपर से यह निर्जीव लगता है लेकिन इस के भीतर अणुओं का द्वंद जारी है, मां के गर्भ से एक जटिल पक्रिया के बाद बच्चा 9 माह बाद पैदा होता है। मानव धर्म का पालन करता है, अपनी जिम्मेदारियां उसी तरह निभाता है जिसतरह एक अन्य प्राणी अपनी बुद्धि अनुसार करता है। एक क्षत्रिय यानि सैनिक का धर्म युद्ध करना है। धर्म शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है , इसको जानने के लिए
इसमें जीना पड़ता है जो इसमें जीता है वही जान लेता है इसकी परिभाषा भी। दूसरे शब्दों में इब्राहमिक रिलीजनों की तरह यह किसी एतिहासिक घटना घटित होने से नहीं जुड़ा,न ही यह किसी के द्वारा बनाया जाता है। कहने का मतलब यह है कि यदि ईसा मसीह न होते,तो बाइबल भी न होता और फिर ईसाई रिलीजन भी न होता। या फिर यदि ईसा मसीह या बाइबल को एक तरफ कर दिया जाए तो
ईसाई धर्म बैठ जाएगा यानि इसको जीवित रखने के लिए इन ऐतिहासिक घटनाओं का होना बहुत जरूरी है।
दूसरी तरफ यदि सभी भगवान, वेद, उपनिशदों आदि को निकाल भी दिया जाए या ये न भी होते तो भी धर्म रहता है। क्योंकि मानव योग व भक्ति योग व आत्म अनुभूति सत,चित,आनंद से धर्म का पालन कर सकता है।
आजकल कुछ मूढ़ लोग जो समझते हैं कि वे धर्म के जानकार हैं। ऊंचे पदों पर बैठे एक माइंडसैट से सोचते हैं, कहते हैं कि सनातन धर्म सिर्फ एक जीवन पद्धति है। ये लोग हर चीज को धर्म के आयने से नहीं देखते उन अंग्रेजी स्कूलों के पढ़ाए गए पाठ्यक्रम से आयने से देखते
हैं जो ईसाई मिशनरियों के द्वारा चलाए जाते हैं। अब हम बात करते हैं जीवन पद्धति की। कुत्तों, गधों व अन्य जानवरों की भी अलग-अलग
जीवन पद्धति है क्या तो फिर वह भी धर्म होना चाहिए। कुत्ते अपना जीवन जीते हैं , गधे अपना जीवन वे जिस परिवेश में रहते हैं तो वह क्या धर्म है। कीट पतंगों, जलचरों, पक्षियों आदि सभी की अपनी-अपनी जीवन पद्धति है तो क्या इसेधर्म कह देेेंगे? ये लोग धर्म परिभाषा
जानने के लिए शंकराचार्य, संतों, मुनियों,गुरूअूों की सलाह नहीं लेंगे, उनसे नहीं पूछेंगे की धर्म क्या है। भगवान कृष्ण ने धर्म के बारे में क्या कहा, वेद क्या कहता है, उनसे नहीं पूछेंगे जिन्होंने इस धर्म में अपनी कई पीढिय़ां खपा दीं। ये भड़वे देव दत्त पटनायक,पंकज मिश्रा, वैंगी डोनियर, अरुंधती राय जैसे विधॢमयों की सलाह पर चलते हैं। बंद कमरे में अपने उच्च पदों का प्रभाव दिखाकर धर्म की परिभाषा देंगे। एपिक चैनल पर इन्हें ही बुलाएंगे और जब सनातन धर्म की बात हो रही होगी तो पीछे से डरावना म्यूजिक चलाएंगे। इन भड़वों के जाल में
कई भोले भाले सैकुलर टाइप के हिन्दू फंस जाते हैं।
धर्म क्या है? धर्म है संस्कृत के शब्द धृ से बना। धृ का अर्थ है जिसने इस सारे ब्रह्मांड के पकड़ा हुआ है। जैसे एक वृक्ष मजबूत जड़ों के सहारे
खड़ा रहता है। यह शाश्वत है, यह न पैदा हुआ,न किसी के द्वारा बनाया गया, यह हमेशा था। इसके बिना किसी का कोई अस्तिव नहीं।
ग्रह अपनी-अपनी परधि में रहकर आपस में न टकराते हुए सूर्य के ईर्द-गिर्द नियम अधीन घूम रहे हैं। एक पत्थर भी अपने अणुओं को इस तरह जकड़ कर रख रहा है। ऊपर से यह निर्जीव लगता है लेकिन इस के भीतर अणुओं का द्वंद जारी है, मां के गर्भ से एक जटिल पक्रिया के बाद बच्चा 9 माह बाद पैदा होता है। मानव धर्म का पालन करता है, अपनी जिम्मेदारियां उसी तरह निभाता है जिसतरह एक अन्य प्राणी अपनी बुद्धि अनुसार करता है। एक क्षत्रिय यानि सैनिक का धर्म युद्ध करना है। धर्म शब्द का अर्थ बहुत व्यापक है , इसको जानने के लिए
इसमें जीना पड़ता है जो इसमें जीता है वही जान लेता है इसकी परिभाषा भी। दूसरे शब्दों में इब्राहमिक रिलीजनों की तरह यह किसी एतिहासिक घटना घटित होने से नहीं जुड़ा,न ही यह किसी के द्वारा बनाया जाता है। कहने का मतलब यह है कि यदि ईसा मसीह न होते,तो बाइबल भी न होता और फिर ईसाई रिलीजन भी न होता। या फिर यदि ईसा मसीह या बाइबल को एक तरफ कर दिया जाए तो
ईसाई धर्म बैठ जाएगा यानि इसको जीवित रखने के लिए इन ऐतिहासिक घटनाओं का होना बहुत जरूरी है।
दूसरी तरफ यदि सभी भगवान, वेद, उपनिशदों आदि को निकाल भी दिया जाए या ये न भी होते तो भी धर्म रहता है। क्योंकि मानव योग व भक्ति योग व आत्म अनुभूति सत,चित,आनंद से धर्म का पालन कर सकता है।
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