मंदिर बनाने क्यों जरूरी हैं और इससे क्या लाभ हैं
मंदिर बनाने क्यों जरूरी हैं और इससे क्या लाभ हैं
आज कुछ विधर्मी लोग मंदिर बनाने का विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि मंदिर नहीं बनाने चाहिए। इनके स्थान पर अस्पताल व विद्ययाल आदि बनाने चाहिए। उनकी हां में हमारे भी कुछ मूढ़ बुद्धिजीवि मिलाने लग गए हैं। आइए आज इस कथन की भारतीय दृष्टिकोण से विवेचना करते हैं। एक मंदिर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सैंकड़ों लोगों को रोजगार देता है। जब एक मंदिर का निर्माण होता है तो धर्म प्रचार के लिए भूखंड खरीदा जाता है। उस भूखंड का भूमि पूजन होता है। इस पूजन में पूजा सामग्री व अन्य सामान को दुकान से खरीदा जाता है। ब्राह्मण पूजन करते हैं और उनको रोजगार मिलता है। फिर शुरू होता है मंदिर निर्माण का कार्य बिल्डिंग मैटीरियल,सरिया,सीमैंट, बजरी, मिट्टी, बल्ले आदि दुकानों से खरीदे जाते हैं। फिर मजदूरों व मिस्त्रियों को मंदिर के निर्माण में लगभग 5 साल तक पक्का रोजगार मिल जाता है।
पलम्बर, इलैक्टीशियन, पेंटर, तरखान आदि को भी रोजगार मिल जाता है। मीनाकारी करने वाले कारीगरों को अच्छा वेतन मिलता है। जब मंदिर तैयार हो जाता है तो मंदिर में स्थापित करने के लिए भगवान की सुंदर मूर्तियां रखी जाती हैं। जिनकी कीमत लाखों रुपए से शुरू होती है।
इन मूर्तियों को बनाने वाले विशेष कारिगरों की कला का उचित मूल्य पड़ जाता है। प्राचीन आगम विद्या व वास्तु के आधार पर मंदिरों का निर्माण होता है। मंदिर में भगवान को सजाने के लिए वस्त्र, गहने,आभूषण, हीरे, मोती दुकानदारों से खरीदे जाते हैं। ढोलक, हारममोनियम, लाऊड स्पीकर भी खरीदे जाते हैं। इस इस प्रकार हर किसी को रोजगार मिलता है। मंदिर बन जाने के बाद वहां गुरुकुल, स्कूल, डिस्पैंसरी भी खोली जाती है। मोहनी अट्टम, कत्थक, भरतनाट्यम आदि सभी कलाएं मंदिरों से ही निकली हैं। वेद, उपनिशद आदि धर्म ग्रंथ छापने वालों को भी रोजगार मिलता है। हर मंदिर में बरगद, पीपल,केले आदि के पेड़ लगाए जाते हैं। इससे पेड़ों को भी संरक्षण मिलता है। पहले हर मंदिर में गऊशाला होती थी। भक्त गौ सेवा का आनंद उठाते थे। कहने का मतलब है कि एक मंदिर धर्म प्रचार के साथ-साथ हजारों लोगों के रोजगार का साधन है। जिन मंदिरों की आय ज्यादा होती उनके प्रबंधकों ने बड़े-बड़े अस्पताल भी बनाए हैं जो लोगों की सेवा कर रहे हैं।
हर व्यक्ति को मंदिर बनाने में सहयोग देना चाहिए। उन्हें देखना चाहिए कि जो मंदिर कम आय वाले हैं उन्हें सहयोग दें। जब वह मंदिर समृद्ध हो जाए तो उस जगह पर मंदिर बनवाना चाहिए जहां उसकी ज्यादा जरूरत हो। जिन मंदिरों की आय अच्छी है वहां की प्रबंधक कमेटियों चाहिए कि आसपास के मंदिरों को समृद्ध बनाने में सहयोग दें। यह एक यज्ञ है इसमें अपनी -अपनी आहूती जरूरी डालें। भगवान उनके पाप माफ कर देता है। वह अपने व अपने परिजनों के लिए वैकुंठ धाम में भगवान के चरणों में अपनी जगह बना लेता है
यदि आपके पास ऐसा कोई प्रोपोजल है और आप चाहते हैं कि मंदिर बनाया जाए आप हम आपको उचित जहग बताएंगे और प्रशिक्षित स्टाफ भी देंगे।
आज कुछ विधर्मी लोग मंदिर बनाने का विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि मंदिर नहीं बनाने चाहिए। इनके स्थान पर अस्पताल व विद्ययाल आदि बनाने चाहिए। उनकी हां में हमारे भी कुछ मूढ़ बुद्धिजीवि मिलाने लग गए हैं। आइए आज इस कथन की भारतीय दृष्टिकोण से विवेचना करते हैं। एक मंदिर प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से सैंकड़ों लोगों को रोजगार देता है। जब एक मंदिर का निर्माण होता है तो धर्म प्रचार के लिए भूखंड खरीदा जाता है। उस भूखंड का भूमि पूजन होता है। इस पूजन में पूजा सामग्री व अन्य सामान को दुकान से खरीदा जाता है। ब्राह्मण पूजन करते हैं और उनको रोजगार मिलता है। फिर शुरू होता है मंदिर निर्माण का कार्य बिल्डिंग मैटीरियल,सरिया,सीमैंट, बजरी, मिट्टी, बल्ले आदि दुकानों से खरीदे जाते हैं। फिर मजदूरों व मिस्त्रियों को मंदिर के निर्माण में लगभग 5 साल तक पक्का रोजगार मिल जाता है।
पलम्बर, इलैक्टीशियन, पेंटर, तरखान आदि को भी रोजगार मिल जाता है। मीनाकारी करने वाले कारीगरों को अच्छा वेतन मिलता है। जब मंदिर तैयार हो जाता है तो मंदिर में स्थापित करने के लिए भगवान की सुंदर मूर्तियां रखी जाती हैं। जिनकी कीमत लाखों रुपए से शुरू होती है।
इन मूर्तियों को बनाने वाले विशेष कारिगरों की कला का उचित मूल्य पड़ जाता है। प्राचीन आगम विद्या व वास्तु के आधार पर मंदिरों का निर्माण होता है। मंदिर में भगवान को सजाने के लिए वस्त्र, गहने,आभूषण, हीरे, मोती दुकानदारों से खरीदे जाते हैं। ढोलक, हारममोनियम, लाऊड स्पीकर भी खरीदे जाते हैं। इस इस प्रकार हर किसी को रोजगार मिलता है। मंदिर बन जाने के बाद वहां गुरुकुल, स्कूल, डिस्पैंसरी भी खोली जाती है। मोहनी अट्टम, कत्थक, भरतनाट्यम आदि सभी कलाएं मंदिरों से ही निकली हैं। वेद, उपनिशद आदि धर्म ग्रंथ छापने वालों को भी रोजगार मिलता है। हर मंदिर में बरगद, पीपल,केले आदि के पेड़ लगाए जाते हैं। इससे पेड़ों को भी संरक्षण मिलता है। पहले हर मंदिर में गऊशाला होती थी। भक्त गौ सेवा का आनंद उठाते थे। कहने का मतलब है कि एक मंदिर धर्म प्रचार के साथ-साथ हजारों लोगों के रोजगार का साधन है। जिन मंदिरों की आय ज्यादा होती उनके प्रबंधकों ने बड़े-बड़े अस्पताल भी बनाए हैं जो लोगों की सेवा कर रहे हैं।
हर व्यक्ति को मंदिर बनाने में सहयोग देना चाहिए। उन्हें देखना चाहिए कि जो मंदिर कम आय वाले हैं उन्हें सहयोग दें। जब वह मंदिर समृद्ध हो जाए तो उस जगह पर मंदिर बनवाना चाहिए जहां उसकी ज्यादा जरूरत हो। जिन मंदिरों की आय अच्छी है वहां की प्रबंधक कमेटियों चाहिए कि आसपास के मंदिरों को समृद्ध बनाने में सहयोग दें। यह एक यज्ञ है इसमें अपनी -अपनी आहूती जरूरी डालें। भगवान उनके पाप माफ कर देता है। वह अपने व अपने परिजनों के लिए वैकुंठ धाम में भगवान के चरणों में अपनी जगह बना लेता है
यदि आपके पास ऐसा कोई प्रोपोजल है और आप चाहते हैं कि मंदिर बनाया जाए आप हम आपको उचित जहग बताएंगे और प्रशिक्षित स्टाफ भी देंगे।
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