inter-faith marriage क्या होती है और इसमें क्या ध्यान में रखना है | what is inter-faith marriage

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इंटर फेथ मैरिज क्या होती है और इसमें क्या ध्यान में रखना है
इंटर फेथ मैरिज वह संबंध है जब दो अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग आपस में विवाह करते हैं। भावनाओं में बह कर वे विवाह तो कर लेते हैं लेकिन जब व्यवहारिक रूप से उन्हें सामने आई परेशानियों से जूझना पड़ता है तो इसके भयंकर परिणाम भी सामने आते हैं। हम इसके
विरोधी नहीं हैं लेकिन हम चाहते हैं कि दोनों पक्षों को विवाह से पहले सभी प्वाइंटों पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए । कोई भी प्वाइंट छिपाया नहीं चाहिए।
उदाहरण के तौर पर जब एक हिन्दू महिला मुस्लिम लड़के से निकाह करती है तो उसे पता होना चाहिए कि निकाह के बाद उसका धर्म परिवर्तन होगा और इसके बाद उस पर शरिया के कानून लागू होंगे। जैसे उसका शौहर उसे तलाक जब चाहे दे सकता है, वह 4 शादियां कर सकता है, उसे बुर्के में भी रहना पड़ सकता है, उसके होने वाले बच्चों का धर्म भी इस्लाम ही होगा और इनकी शादी इनब्रिडिंग हो सकती है यानि अपने ही रिश्तेदारों में, उसे हलाल खाना होगा जिसमें गोमांस भी शामिल हो सकता है, तलाक होने पर बच्चों पर अधिकार केवल पिता का ही होगा इत्यादि।
 मेरे एक लिबरल मित्र ने बड़ी शान से कहा देखो जी हमने तो अपनी लड़की शादी मुस्लिम परिवार में करनी है। शादी हिन्दू धर्म अनुसार भी होगी और मुस्लिम परम्पराओं के आधार पर भी। मैंने उनसे कहा कि आप लड़के  वालों से से कहो कि हम शादी निकाह के बाद हिन्दू धर्म के अनुसार करेंगे। उसने कहा इसमें क्या है जो भी हो शादी तो शादी है। मैंने कहा आप पूछकर बताएं और मैं 100 प्रतिशत दावे के साथ कह सकता हूं कि वे नहीं मानेंगे। वह मेरे से सहमत नहीं हुआ। उसने लड़के वालों से यह शर्त रखी तो उन्होंने साफ इंकार कर दिया।
वह मेरे पास आया तो पूछा कि ऐसा क्यों हुआ? वे क्यों नहीं माने? मैंने कहा कि आप जब हिन्दू तरीके से मैरिज कर लेते हो तो इसके बाद
जब निकाह होता है तो लड़की का इस्लाम में प्रवेश हो जाता है। जो भी धार्मिक काम आपने निकाह से पहले किए हैं वे स्वत रिजैक्ट हो जाते हैं। अर्थात वे मान्य नहीं रहते। लड़की का निकाह से धर्मपरिवर्तन हो जाता है। यदि आप ये जानकर भी अपनी लड़की का निकाह कर सकते हैं तो कोई बात नहीं है।

एक और उदाहरण मंदिर में मुस्लिम लड़के से शादी करने वाली लड़की ने बताया कि मंदिर में पंडित जी ने उनकी शादी करवाई अपनी दक्षिणा ली और चलते बने। उन्हें ये भी नहीं पता कि हम कौन हैं और क्या करते हैं। लड़के का मकसद उसे बैड तक ले जाने का था उसके बाद वह साफ मुकर गया।

 पंडित जी के पास भी शादी का कोई सबूत नहीं था और होता तो वह भी मान्य नहीं था। वह इस शादी को कहीं भी प्रमाणित नहीं कर सकी। दूसरी तरफ यदि यही स्थिति होती तो निकाह से पहले विटनेस रखे जाते, विधिवत धर्म परिवर्तन होता और मौलवी के पास वर बधू की पूरी जानकारी होती और वह लिखित रूप से निकाह प्रमाणित करता। गांवों से आए पंडित पूरी तरह से प्रशिक्षित नहीं होते और वे इस मामले की गम्भीरता भी नहीं जानते।

यूरोप में एक समुदाय की लड़की से हिन्दू युवक ने शादी कर ली। शादी लड़की के धर्म के अनुसार हुई। शादी के वर्षों के बाद युवक का लड़की से तलाक हो गया। उस युवक को बच्चे नहीं मिले क्योंकि वहां की अदालत ने निर्णय दिया कि हालांकि युवक की शादी लड़की के धर्म के अनुसार हुई थी और इसलिए लड़के ने शादी से पहले लड़की के धर्म के अनुसार शर्तें मानने की बात की थी। इसलिए लड़की के धर्म के अनुसार बच्चे लड़की के पास ही रहेंगे।
अब इस स्थिति में जब भी इंटर फेथ शादी हो तो वर वधू को कोर्ट मैरिज करनी चाहिए। इससे www.bhrigupandit.comभारतीय कानून के अनुसार दोनों पक्षों के निजी मामले दूर रहेंगे और धर्म परिवर्तन भी नहीं होगा। यदि लड़की या लड़का बालिग हैं और सबकुछ समझ कर कदम उठाते हैं तो इसके वे जिम्मदार होते हैं। लेकिन ऐसे विवाहों से पहले एकदूसरे पक्ष को भलि भांति पता होना चाहिए कि वे क्या कदम उठाने जा रहे हैं। (ये विचार महान लेखक राजीव मल्हौत्रा से प्रेरित हैं जो विभिन्नता, इंद्रजाल व विखंडित भारत महान पुस्तकों के लेखक हैं)

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