केन्द्रीय विद्यालयों में प्रार्थना क्या एक धर्म विशेष को बढ़ावा देती है?

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केन्द्रीय विद्यालयों में प्रार्थना क्या एक धर्म विशेष को बढ़ावा देती है?
आजकल देश में एक  बहस हो रही है कि केन्द्रीय विद्यालयों में करवाई जा रही प्रार्थना एक धर्म विशेष को बढ़ावा देती है। इसे बंद करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका डाली गई है और सुप्रीम कोर्ट ने भी तुरंत इस मामले में केन्द्र सरकार से जबाव मांगा है। ये वही अदालत है जो कहती है कि हिदुत्व एक जीवन पद्धति है।
एक छोटा सा देश था। उस देश के वासी अपनी भाषाओं में बात करते थे। अपने धर्म का पालन करते थे। उनका खान-पान पहरावा, भाषा अलग-अलग जरूर थी लेकिन वे फिर भी जमीनी स्तर पर एक दूसरे से जुड़े हुए थे। फिर अरब देश से हमलावर आए और अपने साथ भाषा,,खान-पान वे अपना रिलीजन भी लाए। उसे देश के करोड़ो लोगों को अपने साथ शामिल कर लिया और वापस नहीं गए यहीं बस गए।
उन्होंने उस देश की संस्कृति, भाषा, धर्म को रिजैक्ट कर दिया और अपना उनपर थोप दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी संख्या के बल पर देशके अलग टुकड़े भी कर लिए।
अब इस गुलाम रहे देश में जो लोग अपनी भाषा, धर्म व पहरावा पहनते थे उस पर भी उंगली उठने लगी कि इससे कुछ लोगों की भावनाएं आहत होती हैं इसलिए इनको रोका जाए। इससे एक जीवन पद्धति खतरे में पड़ जाएगी। अब प्रश्न है कि कौन सी जीवन पद्धति अरबी या उस देश की मूल जीवन पद्धति। केन्द्रीय विद्यालयों में गाई जाने वाली प्रार्थना यदि भारत की जीवन पद्धति को दर्शाएगी तो क्या इससे देश का
सैक्युलिरिज्म खतरे में आ जाएगा। यानि मूल धर्म से  अब खतरा लगने लगा है।
अब बात की जाए याचिकाकत्र्ता पर। इस याचिका को दायर करने के पीछे मुख्य लोग कौन हैं जो पर्दे के  रहकर बड़ी होशियारी  से इस काम को अंजाम दे रहे हैं। ये वही लोग हैं जो दही हांडी,दीवाली प्रदूषण, जल्लीकट्टू, दही हांडी, होली आदि पर विन्निन तरह के आरोप लगाते हैं। इन लोगों को फंड कहां से आता है । इस बारे में गहन चिंतन की आवश्यकता है। यह फंडा विदेशी लोग बड़ी चालाकी से करते रहे हैं। जब ये किसी देश के लोगों के जीवन स्तर का मजाक उडऩा, हमला करना चाहते हैं तो ये इसके लिए पूरी तरह से प्रोफैशनल किल्लर की तरह काम करते हैं। जब किसी देश की मूल भाषा,धर्म संस्कृति पर हर तरफ से हमला किया जाता है तो इसी दौरान अपने धर्म के प्रचारकों को घुसेड़ दिया जाता हैं। इन लोगों के एनजीओ देश के हर विभाग में फैले  हैं। अफ्रीका,यूरोप व अमेरिका में भी ऐसा ही किया गया था। इसके लिए उसी देश के उसी धर्म के लोगों को पैसा देकर खरीदा गया और आप पर्दे के पीछे काम किया गया लोग समझ ही न सके कि असली दुश्मन कौन है।















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